________________
अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् ... [ २३
-
दीक्षा होली के इलाजी के समान मजाक तथा प्रहर्सन का पात्र बनाती है ॥२॥
तम्हा पंचायारा
राहणहेऊं गहिज इय निगमे । लोबाइकरुलुरूवा,
पवजा जह भवे सफला ॥३॥ अतः पंचाचार (ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप-वीर्य तथा आचार) के आराधन के लिये लोचादि कष्टस्वरूप नियम ग्रहण करने चाहिये । जिससे कि नियम पूर्वक प्रव्रज्या सफल बने ॥३॥ 'नाणाराहणहेउं.....
पइदिग्रहं पंचगाह पठणं मे। परिवाडियो गिरहे
पणगाहा णं च सठठाय ॥४॥ इसमें, ज्ञान आराधन के लिये मेरे रचित हमेशा पांच मूल गाथाओं को याद करना चाहिये तथा इन पांच गाथाओं को कण्ठाग्र कर नित्य गुरु के पास से इसकी वाचना लेनी चाहिये ॥४॥