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गुणानुराग कुलकम्
ग्रह रुसइ तो नियमा,
न तेसिं दोसं पयासेइ ॥२४॥ ऐसे लोगों पर करुणा करके यदि वे माने तो उन्हें सत्य का रास्ता बताना चाहिये, यदि वे उस पर भी गुस्से हो जाते हैं तो भी उनकी निंदा तो नहीं करनी चाहिये ॥२४॥ संपइ दूसमसमए,
दीसइ थोवो वि जस्स धम्मगुणो। बहुमाणो कायव्यो,
तस्स सया धम्मबुद्धीए ॥२५॥ आज के विषम काल में जिसमें थोडा भी धर्मस्वरूप गुण दिखाई दे उसका हमेशा धर्मबुद्धि से सम्मान करना चाहिये ॥ २५ ॥ जउ परगच्छि सगच्छे,
जे संविग्गा बहुस्सुया मुणिणो। तेसिं गुणाणुराय,
__मा मुचसु मच्छरप्पहशो ॥२६॥ ___ यदि कोई पर गच्छ में हो या स्व गच्छ में हो किन्तु वैराग्यवान ज्ञानी हो मुनि हो तो उनकी तरफ कभी भी इर्षा से नहीं देखना चाहिये ॥ २६ ॥