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गुणानुराग कुलकम्
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एएसिं पुरिसाणं,
जइ गुणगहणं करेसि बहुमाणा। तो अासन्नसिवसुहो,
होसि तुम नत्थि संदेहो ॥२२॥ जो इन चारों प्रकार के पुरुषों के गुणों में सम्मान पूर्वक उनके गुणों की प्रशंसा करता है या हे जीव ! यदि तू प्रशंसा करेगा तो निकट भविष्य में मुक्ति सुख को प्राप्त करेगा इसमें तनिक संदेह नहीं ॥ २२ ।। पासत्थाइसु अहुणा,
संजमसिढिलेसु मुक्कजोगेसु। नो गरिहा कायव्वा,
नेव पसंसा सहामज्झे ॥२३॥ पुनः वर्तमान समय में संयम पालन में शिथिल ज्ञानादि गुणसाधक क्रिया से हीन पावस्था आदि जो साधुओं का वेश रखते हैं उनकी भी निंदा नहीं करनी चाहिये ।।२३।। काऊण तेसु करुणं,
जइ मन्नइ तो पयासए मग्गं । '