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गुणानुराग कुलकम्
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एवं विह-जुवइगो ,
जो रागी हुज कहवि इगसमयं । बीय समयम्मि निंदइ,
ते भावे सव्वभावेणं ॥१७॥ जम्ममि तम्मि न पुणो,
हविज रागो मणमि जस्स कया। सो होइ उत्तमुत्तम रूवो,
पुरिसो महासत्तो ॥१८॥ (२) उपयुक्त सुन्दर स्त्रियों के बीच रहता हुआ संयोगवश क्षण भर कामग्रस्त हो जाता है तथा तत्काल उससे मुक्त हो जाता है तथा इस विकार के लिये मन, वचन काया से अपनी भर्त्सना करता है पुनः इस जन्म में ऐसा राग विकार न होवे वह 'उत्तमोत्तम' कहा जाता है, ऐसे पुरुष महासत्त्वशाली कहे जाते हैं ॥ १७-१८॥ पिच्छई जुवइ रूवं,
मणसा चिंतेइ अहम खणमेगं । . जो नायरइ अकज्ज,
पत्थिज्जतो वि इत्थीहिं ॥११॥