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पांचवे प्रकार के जीव अधम या कर्मों का भार बढ़ाने वाले होते हैं, छट्ठे प्रकार के जीव अधमाधम जो धर्म विवजिंत होते हैं उनकी भी निंदा नहीं करनी चाहिये। उन पर दया करनी चाहिये ॥ १४ ॥
उन चार प्रकार के जीवो का स्वरूप
पच्चंगुब्भड जुव्वा,
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वंतीणं सुरहिसार देहायां ।
जुवईणं मज्झगयो,
सव्वतम रूववंतीणं
या जम्म बंभयारी,
सदुत्तमुत्तमो पु
॥१५॥
मणवय कायेहिं जो घरइ सीलं ।
सोपुरिसो सव्वनमणिजो [ युग्मं ] ॥ १६ ॥
(१) सर्वाङ्ग सुन्दरी, सुगन्धमय यौवन से लुभाने वाली स्त्रियों के बीच में रहता हुआ भी ब्रह्मचारी की तरह जन्म से ही ब्रह्मचारी रहता है । तथा मनसा, वाचा एवं कर्मणा शीलव्रतधारी रहता है वह सर्बसर्वोत्तम जानना चाहिये । ऐसे पुरुष सर्वतः नमन योग्य हैं ॥। १५-१६ ॥