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गुणानुराग कुलकम्
साहू वा सढो वा, सदार संतोषसायरो हुज्जा |
सो उत्तमो मगुस्सो, नायव्वो थोव संसारो
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(३) तीसरे प्रकार के वे लोग होते हैं जो सुन्दरियों के
स्वरूप का क्षण भर पान कर मन में ध्यान अकार्य नहीं करते वै साधु की श्रेणी में अथवा श्रावक भी हो सकते हैं जो स्वदारा वे अल्प संसारी उत्तम पुरुष कहे गये हैं ॥ १६-२० ॥
करते हैं किन्तु गिने गये हैं । संतोषी होते हैं
पुरिसत्थेसु पवट्टइ
जो पुरिसो धम्मश्रत्थपमुहेसु ।
अन्नुन्नमवाबाहं,
मज्झिम रूवो हवइ एसो ॥२१॥
जो मनुष्य (धर्म, अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थं परस्पर अबाधित हो) इस प्रकार से प्रवर्तित होते हैं, अर्थात् धर्मार्थ काम रूप से पालन करते हैं वे चौथे प्रकार के 'मध्यम पुरुष' जानने चाहिये ॥ २१ ॥