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गुरु प्रदक्षिणा कुलकम्
सा पुण कित्तियमित्ता, दिट्ठे तुह सुगुरु मुहकमले ॥ ७ ॥
हे उत्तम गुरो ! आपके मुख कमल के दर्शन के आगे देवताओं की देवाङ्गनाओं सहित जो समृद्धि है उसका कोई महत्व नहीं है । क्योंकि उससे भी आपके दर्शन विशेष महत्वपूर्ण है || ७ || मणवय काहिं मए,
जं पावं अज्जियं सया भयवं ।
तं सयलं अज्जगयं,
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दिट्ठे तुह सुगुरु मुहकमले ॥ ८ ॥
हे सद्गुरो ! आपके दर्शन से आज मेरे द्वारा किया गया मन, वचन, काय से जो भी पाप है वह सब नष्ट हो गया है । अर्थात् गुरु दर्शन से अनन्त भवों के पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ ८ ॥
दुलहो जिणिदधम्मो,
दुलहो जीवाण माणुसो जम्मो ।
लद्धेवि मणुश्रजम्मे,
इदुलहा सुगुरु सामग्गी ॥ १ ॥