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गुरु प्रदक्षिणा कुलकम् ___ [१९ जह सरइ सुरही वच्छं, - वसंत मासंच कोइला सरइ । विझ सरइ गइंदो,
इह अम्ह मणं तुमं सरइ ॥१२॥ ___ हे गुरुदेव ! जिस प्रकार गो अपने वत्स को संभालती है, जिस प्रकार कोयल मधुमास की प्रतीक्षा करती है तथा जिस प्रकार गज विंध्याटवी का स्मरण करता है उसी प्रकार आप भी हमारे हृदय में बसे हुए है ॥ १२ ॥ बहुया बहुयां दिवसडां, ___जइ मई सुह गुरु दी। लोचन बे विकसी रह्यां,
हीअडइं अमिय पइट ॥१३॥ बहुत बहुत दिन वितने पर अब आपके दर्शन से हे गुरुदेव ! आज का दिन धन्य है क्योंकि आज आपके दर्शन से मेरे नेत्र विकस्वर हो गये तथा हृदय अमृत से भर गया ॥१३॥ अहो ते निजित्रो कोहो, . - अहो माणो पराजियो।