Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [बन्धगो ६ ६ ५६. कालो विहत्तिभंगो । णवरि अवत्त० भुजगारभंगो।
६६०. अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ भागाभागं परिमाणं खेत्तं पोसणं कालो अंतरं भावो च विहत्तिभंगो । णवरि अवत्त० भुजगारभंगो।
६१. अप्पाबहुआणु० दुविहो णिदेसो-ओषेण आदेसेण य । ओघेण मोह. सम्वत्थोवा अवत्त०संका० । अणंतभागहाणिसंका० अणतगुणा । सेसपदाणं विहत्तिभंगो । मणुस्समु सव्वत्थोवा अवत० । अणंतभागहा० असंखे०गुणा । उरि ओघं । एवं मणुसपज मणुसिणी० । णवरि संखेन्गुणं कायछ । सेसमग्गणासु विहत्तिभंगो।
६६२. ठाणाणमणुभागविहत्तिभंगाणुसारेण परूवणा कायया ।
- एवं मूलपयडिअणुभागसंकमो समत्तो। * तदोउत्तरपयडिअणुभागसंकर्म पउवीसअणियोगद्दारेहि वत्तइस्सामो।
६६३. तदो मूलपयडिअणुभागसंकमविहासणादो अणंतरं पुषपरूविदेण अद्रुपदेण उत्तरपयडिविसयमणुभागसंकमं वत्तहस्सामो ति एसा पइजा सुत्तयारस्स । तत्थाणियोगदाराणमियत्तावहारणहमिदं युत्तं 'चउवीसमणियोगदारेहि ति। काणि ताणि चउवीसअणिओगद्दाराणि १ सण्णा सव्यसंकमो णोसब्बसंकमो उक्स्ससंकमो अणुकरससंकयो जहण्गसंकमो
६५६. कालका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यका भङ्ग भुजगारके समान है।
६ ६०. अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर और भावका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यका भङ्ग भुजगारके समान है। .
६६१. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके अवक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनन्तभागहानिके संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं। शेष पदोंका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है। मनुष्योंमें प्रवक्तव्यसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनन्तभागहानिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। आगे ओघके समान भङ्ग है। इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणेके स्थानमें संख्यातगुणा करना चाहिए। शेष मार्गणाओंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है। ६६२ स्थानोंका अनुभागविभक्तिके भङ्गके अनुसार प्ररूपणा करना चाहिए।
इस प्रकार मूलप्रकृतिअनुभागसक्रम समाप्त हुआ। * अब चौबीस अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर उत्तरप्रकृतिअनुभागसंक्रमका कथन
करेंगे।
६६३. 'तदो' अर्थात् मूलप्रकृतिअनुभागसंक्रमका कथन करनेके बाद पूर्व में कहे गये अर्थपदके आश्रयसे उत्तरप्रकृतिविषयक अनुभागसंक्रमको कहेंगे इस प्रकार सूत्रकारकी यह प्रतिज्ञा है । वहाँ अनुयोगद्वारोंकी इयत्ताका निश्चय करनेके लिए 'चउवीसमणियोगद्दारेहिं' यह वचन कहा है । वे चौबीस अनुयोगद्वार कौन हैं ऐसा प्रश्न होने पर उनका नाम निर्देश करते हैं। यथा-संज्ञा, सर्वसंक्रम, नोसर्वसंक्रम, उत्कृष्ट संक्रम, अनुत्कृष्ट संक्रम, जघन्य संक्रम, अजघन्य संक्रम, सादि