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भूमिका वैज्ञानिक चित्रण है। वैराग्य तथा अध्यात्म स्थान स्थान पर झलकता है। उसके अनेक पद सूक्ति संग्रह मे संकलित करने के योग्य है।
अनुवाद: प्रस्तुत अनुवाद की शैली वही है, जिसका अनुकरण मैंने कल्हण तथा जोनराज एवं शुक में किया है। प्रत्येक पद का अनुवाद, जिसमें क्रिया मिल गयी है, एक ही पद में किया गया है। यदि क्रिया दूसरे पद मे मिली है, तो पद तोड़कर, अनुवाद किया गया है। उन शब्दों, जिनका श्रीवर के समय में क्या अर्थ होता था, निश्चित प्रामाणिक नहीं मालूम हुआ है, उन शब्दों को यथावत् रख दिया गया है। क्रिया, वचन, एवं लिंग का मूलरूप में अनुवाद किया गया है। अर्थ भाव के साथ किया है। पूर्वापर प्रयोग का ध्यान रखकर सीमा के बाहर, न जाने का भरसक प्रयास किया है।
कितने ही तत्कालीन शब्द अप्रचलित हो गये हैं। उनका वह अर्थ आज नही है जो उस समय था। संस्कृत पदों मे अप्रचलित शब्दों के कारण कठिनाई होती है। कल्हण का अनुवाद परिष्कृत संस्कृत शैली होने के कारण, करना सरल है, परन्तु जोनराज तथा श्रीवर के अनुवाद में कठिनाई का बोध हुआ है । अनुवाद समझने के लिये काश्मीर का ऐतिहासिक एवं भौगोलिक ज्ञान होना आवश्यक है।
श्रीवर की राजतरंगिणी का यह प्रथम अनुवाद है । विश्व की किसी भी भाषा में प्रथम है। अनुवाद में कठिनता का सामना करना पड़ा है। यह प्रथम भाष्य एवं टिप्पणी है। मैंने भविष्य के अनुवादको एवं भाष्यकारो के लिये मार्ग प्रशस्त किया है। अनुवाद की रोचकता बढ़ाने के लिये अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ा है । अर्थ स्पष्ट करने के लिये, जहाँ शब्दों की आवश्यकता हुई है, उन्हे कोष्ट मे रख दिया है । मूल भाव तथा रचना को अछूता रखने का प्रयास किया है। जिन पदों के दो अर्थ होते है, उन दोनों को रख दिया है। पाद टिप्पणी में ऐतिहासिक व भौगोलिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व की सामग्रियों को देने का प्रयास किया है। प्रमाण के अभाव में अपना निश्चित मत किसी विषय अथवा स्थान निरूपण मे न देकर, उन्हे यथावत् छोड़ दिया है । भविष्य के रचनाकार अनुसन्धानों द्वारा इस को पूरा करेंगे।
इतिहास : श्रीवर ने कल्हण एवं जोनराज कृत राजतरंगिणी पढ़ी थी । इतिहास लिखने की पृष्ठभूमि इस अध्ययन से तैयार हो गयी थी। श्रीवर की रचना सीमा बहुत ही मर्यादित है । जोनराज ने सन् १४५९ ई. तक का इतिहास लिखा था। उसके पूर्व का इतिहास कल्हण ने लिखा था। श्रीवर ने ललितादित्य का इच्छा पत्र (३:२९८) वुप्पदेव (४:४१३) आदि की बातों को लिखकर, यह प्रमाणित किया है, कि उसने अपने पूर्व लिखी कल्हण तथा जोनराज की राजतरंगिणियों का गहन अध्ययन किया था।
इस परिस्थिती में श्रीवर या तो 'जैन विलास' 'जैन तिलक' 'जैन चरित, के समान समकालीन सुल्तानों का चरित ग्रन्थ लिखता अथवा अपनी प्रतिभा किसी काव्य ग्रन्थ रचना मे प्रकट करता । जैनुल आबदीन के चरित के सम्बन्ध में तत्कालीन कवियों के कई चरित ग्रन्थ लिखे जा चुके थे। श्रीवर के लिये जैनुल आबदीन के के सम्बन्ध में लिखने के लिये बहुत सीमित सीमा रह गयी थी। उसके गुरु ने जैनुल आबदिन के विषय में वह सब कुछ लिख दिया था, जो कुछ लिखा जा सकता था। जैनुल आबदीन का केवल ११ वर्षों का इतिहास श्रीवर लिख सकता था । सन् १४१९ से १४५९ ई० का विस्तृत इतिहास जोनराज लिख चुका था।श्रीवर के समकालीन जैनुल आबदीन, हैदर शाह, हसन शाह एवं मुहम्द शाह सुलतान थे। हैदर शाह ने २ वर्ष, हसन शाह
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