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भूमिका
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जागृत करता है। काश्मीरियों को उठाता है। उसका इन स्थानों का वर्णन किसी देश भक्त के व्याख्यान का रूप ले लेता है ।
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श्रीवर सैमियो तथा विदेशी तुरुष्कों के विरुद्ध या जिन्हें काश्मीर के बाचार, विचार एवं परम्परा में कोई आस्था नहीं थी । वह अपने धर्म के लिए गर्व करता था। उसे हिन्दू होने का गर्व था । वह मुसलिम दर्शन की बहुत बातों का विरोधी था उसने इसकी चिन्ता मुहूर्त मात्र के लिए भी नहीं की कि वह मुसलिम शासित देश में निवास कर रहा था । सुल्तानों का राज कवि था । सुल्तान का गुरु था । जहाँ भी कहीं अवसर आया है, अपनी देश भक्ति का परिचय दिया है, जिसका अभाव जोनराज एवं शुक में खटकता है।
कर :
सुल्तान जैनुल आबदीन ने जैन गिर क्षेत्र में कर का अनुदान सप्तांय रखा था उसने आदेशों को ताम्र पत्र पर अंकित कराकर सर्वसाधारण की जानकारी के लिए गवा दिया यहाँ पर मैने धन से भूमि को सम्पन्न बनाकर कृषि पूर्ण कर दिया है। आप लोग सातवीं अंश ग्रहण करें ।' (१ : ३:३७ ) फारसी लेखों से पता चलता है कि कुछ स्थानों पर खराज चार मे एक और कुछ स्थानों में सात में से एक भाग लिया जाता था। काश्मीर से बाहर जाने वाले लोगों को शुल्क देना पड़ता था। यह प्रथा प्राचीन यो परन्तु जैनुल आबदीन ने शुल्क उठा दिया था । इसका आभास मिलता है । ( १:५ : २२)
से
सुधार :
अपराधियों के सुधार का प्रयास किया गया। अनुल आबदीन ने चोर, चाण्डाल आततायियों के पैरों में बेड़ी डलवा कर उनसे मिट्टी खोदने का कार्य कराया था। आज कल भी कारागारों मे बन्दियों के एक पैर में लोहे का कड़ा डालकर, जेल से बाहर कृषि, खेत जोतने बोने, पानी निकालने तथा निर्माण कार्य कराने पर लगाते है । 'उसने निवासियों को कृषि हेतु आदेश देकर चोर, चण्डाल, आदि के पैरों में श्रृंखला बद्ध कराकर, पहरेदारों के नियन्त्रण में कार्य करने तथा उनसे बलात् मिट्टी का कार्य कराया । ' (१:१:३८ )
सुल्तान जैनुल आबदीन ने राज्यादेशों को ताम्र पत्रों पर खुदवा कर स्थान-स्थान पर लगवा दिया था । गृहस्थों से कोई राजकर्मचारी एक कौड़ी भी अनियमित रूप से नही ले सकता था । ( १:१:३७ ) सुल्तान के जिन न्यायाधीशों ने घूस लिया था, उनसे घूस दाता को धन वापस दिला दिया ।
बेकार अर्थात् जीविका त्रस्त लोगो के लिये, जो चोरी आदि कर, अपनी जीविका चलाते थे, उनके लिए, वृत्ति प्रदान कर उन्हें काम पर लगाया था। ( १:१:३९ ) कोई भी व्यक्ति राज्य में बेकार नही था । परिणाम हुआ कि लोग अपने कामों मे लग गये । समाज में दुराचार, अनाचार स्वतः दूर हो गया । यदि एक राज्य में कोई जाति या वर्ग दुष्टता करता था, तो उन्हें जेलों में बन्द करने की अपेक्षा, उनकी भूमि हर कर, दूसरे स्थान पर, उन्हें भूमि देकर, आबाद किया जाता था । क्रमराज्य में स्थित चक्र (क) आदि दुष्टों की भूमि सुल्तान ने अपहृत कर, उन्हे वृत्ति प्रदान कर, मडव राज्य मे रखा । (१.१:४० ) करुणा के साथ ही साथ सुल्तान में राजा का उग्र रूप भी था । उसकी तुलना धर्मराज (यम) से करते हुए श्रीवर लिखता है - 'अपराध के अनुसार पापी शत्रुओ ने नरक यातनाये प्राप्त की । ( १ : १:२२ ) सुल्तान तानाशाह नहीं था । न्यायालय की व्यवस्था की थी । अपराध के अनुसार दण्ड दिया जाता था ।
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सुल्तान कठोर दण्ड का पक्षपाती नहीं था । सुधार वादी था । सरल दण्ड देकर माय आततायी प्रवृत्तियों का परिवर्तित कर देना चाहता था । श्रीवर लिखता है— 'राजा द्वारा नीति से ही तस्कर उपद्रव