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जैनराजतरंगिणी तरण्डमण्डली राज्ञो वितस्तान्तरगा बभौ ।
शक्रस्येव विमानाली छायापटविभूषिता ॥ ३ ॥ ३. वितस्ता के अन्तर्गत राजा की नाव मण्डली, उसी प्रकार से शोभित हो रही थी, जिस प्रकार इन्द्र' की विमान पंक्ति आकाशगंगा में ।
ने कहा-'कपडा-वपड़ा बनवाया है कि नही, नौरोज जाता था। फिरिस्ता के जन्म का दिन यह माना है, नया कपड़ा पहनना चाहिए।' पण्डित जी मुस्करा जाता था। दूसरा मत है कि जमशेद ने एक नहर कर अपने कुरते का दामन उठाते बोले-'हाँ खुदवायो थी और जल की कमी दूर हो गयी थी। बनवाया है, देखो।' उमा जी प्रसन्न हो गयी। उस समय मुझे काश्मीर के विषय में रुचि नहीं थी। पाद-टिप्पणी मेरा लोकसभा में यह पहला ही वर्प था। अतएव ध्यान नही दिया। आज वह वात तथा उत्सव का ३. (१) इन्द्र : वैदिक देवता है। वैदिक अर्थ समझ मे आ रहा है।
साहित्य में इन्द्र को प्रथम स्थान दिया गया है परन्तु
पौराणिक साहित्य में उसे त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, नौरोज ईरानियों का त्योहार है। पारसी लोग महेश के पश्चात स्थान प्राप्त है। वह अंतरिक्ष भारत म नवीन वप के आगमन पर नाराज का एवं पूर्व दिशा का स्वामी है । आकाश में बिजली उत्सव आनन्द एवं उत्साहपर्वक मनाते है। काश्मीर चलाता था ना है। दन्टनष मस्जित करता में भी नवीन वर्ष चैत्र मे ही आरम्भ होता है। है। रूपवान है। श्वेत अश्व एवं श्वेत ऐरावत मसलिम धर्म एवं फारसी भाषा के प्रचार और मुस- पर वज्र सहित आरूढ होता है । राजधानी अमरावती लिम पर्वो के मनाने के कारण नौरोज की भी प्रथा है। इसका रथ विमान है। सारथी मातली, धनुष चल पड़ी थी। यद्यपि यह भारत के अन्य स्थानों
शक्रधनु, कृपाण पुरंजय, उद्यान नंदन, अश्व उच्चैश्रवा पर सर्वप्रिय नहीं हो सकी।
निवास स्वर्ग एवं राजवाड़ा वैजयंत है।
पारसी राजा जमशेद के समय नवीन पंचांग (२) आकाशगंगा : आकाश में उत्तरबना । उसकी स्मृति में पारसी नौरोज जमशेद मनाते दक्षिण विस्तृत अनेक ताराओं का घना समूह है। थे। फरवरी मास के प्रथम दिन ईरानियों का वर्ष खाली आखों से देखने पर ताराओ का यह समूह प्रारम्भ होता था। इसे नौरोज़ कहते थे। सोगदिया एक सड़क के समान दिखायी पडता है। इसकी के लोग इसे नौसर्द कहते थे। इस दिन मिठाईयाँ चौड़ाई बराबर नही है । कहीं ज्यादा और कहीं कम बाँटी जाती थी। यह पर्व सर्वप्रथम तुर्कों ने शक्र- चौड़ी है। कुछ तारे मूल पंक्ति से इधर-उधर छिटके बहराम नाम से आरम्भ किया था। वह २१ जून से दिखाई देते है। इसे दूधगंगा, सड़क, आकाश-यज्ञोआरम्भ होता था। कालान्तर में २१ मार्च इसके पवीत आदि हिन्दी तथा अंग्रेजी मे मिल्की वे तथा लिये दिन रखा गया। आज भी यह इसी दिन होता गैलेस्की कहते है। इसके अन्य पर्याय मंदाकिनी, है। मार्च को ६ तारीख को खोरबाध नाम से एक विपद्गंगा, स्वर्गगंगा, स्वर्ण-नदी, सुरदीपिका, दिव्यबड़ा नौरोज़ भी मनाया जाता था। इसे आशा का गंगा, आकाशवाहिनी गंगा, सुरनदी, देवनदी, दिन कहते थे। इस दिन होली के समान रंग खेला नाग-वीथी, हरिताली आदि है।