Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 345
________________ २२९ १:७ : १९८-२००] श्रीवरकृता तावद्धस्सनकोशेशः स्वार्थान्धो मोहयन् परान् । गृहीतदिव्यः श्रीहाज्यखानपक्षं समाश्रयत् ॥ १९८ ।। १९८. तब तक स्वार्थान्ध कोशेश हसन दूसरों को धोखा देते हुये, सपथ ग्रहण कर, हाजी खान के पक्ष का आश्रय लिया। अथ निष्कासितोऽन्येद्य : सचिवैः सबलोऽग्रजः । कुमदीनपुरं गत्वा धिया भाग्यश्रियोज्झितः ॥ १९९ ॥ १९९. दूसरे दिन' मन्त्रियो द्वारा निष्काशित, सेना सहित अग्रज (आदम खान) कुद्मदीनपुर जाकर, बुद्धि एवं भाग्यश्री से रहित हो गया। ज्येष्ठोऽप्यभूत् कुशलधीरपि भृत्ययुक्तः __शूरोऽप्यनन्यसदृशोद्यमधैर्ययुक्तः । प्राप्ते क्षणे किमपि साधु न कर्म कुर्यात् पुण्यर्विना न हि भवन्ति समीहितार्थाः ॥ २०० ॥ २००. कुशल बुद्धि भृत्य सहित, शूर, तथा अनुपम, उद्यम एवं धैर्य से युक्त, ज्येष्ठ वह ( आदम खान ) समय आने पर, कोई अच्छा कार्य नही कर सका। निश्चय ही, पुण्य के बिना अभिलाषायें पूर्ण नहीं होती। डाला था परन्तु जीवन भय से काश्मीर की ओर १९९, ( १ ) दूसरे दिन : तवक्काते अकबरी भाग आया। काश्मीर में वह रामचन्द्र को पराजित मे उल्लेख है-'दूसरे दिन अमीरों ने आदम खाँ को एवं नष्ट कर लहर पर अधिकार करने के लिए किसी बहाने से काश्मीर ( श्रीनगर ) से निकाल शस्त्रों को छिपा कर, नगर मे भेजता रहा। अवसर कर हाजी खाँ को शीघ्रतगति शीघ्र बुलवाया' आते ही, वह रामचन्द्र की हत्या कर काश्मीर का (४४५ = ६७१ )। राजा बन गया। आदम खाँ ने उसी नीति का (२) कुद्ददीनपुर : द्रष्टव्य टिप्पणी . १ : ३ : अनुकरण किया परन्तु अपनी अनिश्चित एवं संशया- ८०। फिरिश्ता लिखता है-आदम खाँ अपनी उपत्मक बुद्धि के कारण सफल नहीं हो सका ( जोन० : स्थिति का राजधानी में लाभ उठाकर षड्यन्त्र अपने रा० : १५१, १६७)। भाई के विरुद्ध करने लगा कि उसे पुनः युवराज पाद-टिप्पणी: स्वीकार कर लिया जाय किन्तु वह अमीरों को अपने पाठ-बम्बई। पक्ष मे नही कर सका क्योंकि अमीरों ने स्पष्ट कह १९८. ( १ ) शपथ : तवक्काते अकबरी मे दिया कि बिना सुल्तान के अनुमति के वे लोग उसकी उल्लेख है-'संयोग से उसी रात्रि में हसन कच्छी बात नहीं मान सकते ( ४७४ )। फिरिश्ता राजा ने जो कि प्रतिष्ठित अमीर था, सुल्तान के दीवान- के मृत्यु का वर्णन कर पुनः करता है-सुल्तान की खाने में हाजी खाँ के लिए अमीरों से वैअत (शपथ) मृत्यु के पूर्व कनिष्ठ पुत्र बहराम खाँ अपने अग्रज ले ली ( ४४५ = ६७१)। आदम खाँ के ऊपर इतना हाबी हो गया कि पाद-टिप्पणी: वह सबसे परित्यक्त जानकर कुतुबुद्दीनपुर चला 'पुरम्' पाठ-बम्बई। गया। जहाँ सुल्तान की सेनाएँ हाजी खाँ और

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