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श्रीवरकृता बाल्ये पित्रा वियोगो वरसचिवभियो भ्रातृभृत्यैविरोधः
प्राप्ते राज्ये प्रवासो बहिरथ समरोऽप्यग्रजेनातिकष्टः । धात्रेयेभ्योऽथ चिन्ता तदनु निजसुतैर्यावदायुश्च बाधा
संसारे सर्वदास॒स्रुतिकृति भविनां नित्यदुःखां स्थिति धिक् ।। २६५ ॥ २६५ बालकाल में पिता से वियोग, श्रेष्ठ सचिवों से भय, भाइयों एवं भृत्यो से विरोध, राज्य प्राप्त होने पर, बाहर प्रवास, भाई के साथ अति कष्टप्रद समर, ( युद्ध ) धात्रीपुत्रों से चिन्ता, उसके पश्चात् अपने पुत्रों से जीवनभर बाधा-नित्य दुःखप्रद स्थिति को धिक्कार है ।
नूनं जातकयोगेन पुत्रेभ्यो दुःखमन्वभूत् ।
अभूदस्य सुतस्थाने भौमो यत् पापवीक्षितः ।। २६६ ॥ २६६. निश्चय ही जातकयोग' के कारण, पुत्रों से दुखी हुआ क्योंकि उसके सुतस्थान मे पापदृष्ट भौम था।
पाद-टिप्पणी :
के दो लघु उपग्रह है। उनका व्यास क्रम से चालीस २६६. (१) जातक योग , मानव का फल तथा दस मील है। चन्द्रमा से आकार मे दूना है।
कहलाता है। जातक पृथ्वी एव मंगल का घूर्णन काल लगभग समान है। शास्त्र में पंचम स्थान के द्वारा पुत्र का विचार होता पृथ्वा तथा मंगल दाना ग्रहा पर रात्रि तथा दिन की है। पापग्रह पुत्र की हानि एवं शुभग्रह पुत्र की ।
की लम्बाई एक तरह की होती है। मंगल पर ऋतु प्राप्ति कराते है। पंचम स्थान में मंगल होने पर
परिवर्तन होता है । पृथ्वी के ऋतुओ के प्राय. समान पत्र की हानि करता है। पापदष्ट होने पर पत्र हाता है । भौतिक स्थिति पृथ्वी के समान है। मंगल नाशक होता है। जिसका सन्तान दुर्बल होता ग्रह का रंग लाल है। भूमि का पुत्र पुराणों की है, उसके पुत्रों की हानि होती है अथवा पुत्रों द्वारा मान्यता के अनुसार माना जाता है अतएव नाम विविध प्रकार का कष्ट होता है। ज्योतिष के अनु
भौम पड़ा है। पुराणों के अनुसार यह ग्रह पुरुष सार योग २८ होते हैं। फलित ज्योतिष का एक हैं। जाति क्षत्रिय है। सामवेदी है। भारद्वाज मनि भेद है। जिसके अनुसार कुण्डली देखकर फल कहा नह। इसका चार भुजाय ह । उनम शाक्त, जाता है।
वट, अभय तथा गदा है। पित्त प्रकृति है। युवा (२) पाप दृष्टि भौम : इसे मंगल ग्रह कहते है । क्रूर एवं वनचारी है । रक्त वर्ण समस्त पदार्थों है। यह रक्त वर्ण है। पृथ्वी के अर्धव्यास ४२०० का स्वामी है। अधिष्ठातृ देव कार्तिकेय है । अवंति मील से कुछ बड़ा है। सूर्य से लगभग १४ करोड देश का अधिपति माना गया है। कुछ अंगहीन है। मील की दूरी पर स्थित है। पन्द्रह मील प्रति इस वर्ष मंगल पर मनुष्यों द्वारा चालित यान पहँच सेकेण्ड के वेग से चलता है। एक दशमलव ८८ वर्ष चुका है। में सूर्य की परिक्रमा करता है। इसका घूर्णन काल सप्तम तथा आठवें स्थान को पर्ण दष्टि से चौबीस घण्टा सैतीस मिनट है। सूर्य की परिक्रमा देखता है। मित्र के घर को देखता है, तो शुभ तथा ६८७ दिनों में पूर्ण करता है। पृथ्वी के दिन से अन्य का अशुभ होता है । सूर्य, चन्द्रमा एवं बहस्पति उसका दिन आधा घण्टा बड़ा होता है। मंगल ग्रह मित्र है । बुध शत्रु है। शुक्र एवं शनी सम है।