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२:८] श्रीवरकृता
२५५ राज्ञो हस्सनकोशेशस्तद्राज्यतिलकं ददौ ।
सौवर्णं पुष्पपूजाढयं यदृच्छाविहितव्ययः ॥ ८ ॥ ८. स्वेच्छानुसार व्यय करके, कोशेश हस्सन' ने राजा को सुन्दर, पुष्प पूजा से समृद्ध, राजतिलक किया।
बृहस्पति ग्रह सबसे अधिक कान्तिमान है। सौर सीघों वाला, नील पृष्ठ तथा शत पंखोंवाला वणित मण्डल में सूर्य के अतिरिक्त सबसे बड़ा है। इसका किया गया है ( ऋ० : ४ : ५०; १ : १९०; १० . आकार इतना बड़ा है कि १४१० पृथ्वी का आकार १५५; ५ : ४३; ७ : ९७)। यह स्वर्ण वर्ण है । इसमें समा सकता है । इसका विषुवत व्यास ८८७०० उज्ज्वल, विशुद्ध एवं स्पष्ट वाणी बोलनेवाला है मील है। ध्रुवीय व्यास ८२९०० मील है। ध्रुवों ( ऋ० : ३ : ६२; ५:४३; ७ : ९७) । बृहस्पति पर यह चपटा है। दीर्घ वृत्ताकार लगता है। यह ग्रह, ब्रह्मणस्पति कहा गया है। इसके रथ को सूर्य की परिक्रमा ११ : ८६ वर्षों मे करता है। यह अरुणिम अश्व खीचते है ( ऋ० . १० : १०३; नव घण्टा ५० मिनट में असाधारण वेग से घर्णन २: २३ ) । एक पारिवारिक पुरोहित है ( ऋ० : करता है । अतएव वायु मण्डल अत्यन्त क्षुब्ध रहता
२: २४)। बृहस्पति देवगुरु माने जाते है । है। बृहस्पति के अभी तक १२ उपग्रहों का पता
बृहस्पति के पत्नी का नाम धेना है (गो०
ब्रा० : २ : ९)। धेना का अर्थ वाणी है। जुहू लग सका है। कुछ उपग्रह बुध ग्रह क बराबर ह । नामक इसकी दूसरी पत्नी भी है। उन बारह उपग्रहों में चार उपग्रह बृहस्पति के चारो
पुराणों की मान्यता के अनुसार, सौर मण्डल मे ओर विपरीत दिशा में चलते है। शनि तथा मंगल ।
स्थित बृहस्पति नक्षत्र यही है। इसकी पत्नी का के मध्य बहस्पति की स्थिति है। बृहस्पति से सूय नाम तारा था। सोम ने तारा का अपहरण किया ४८ करोड ३२ लाख मील दूर है। सौर मण्डल का
था (वायु० : ९०:२८-४३, ब्रह्म०:९:१९यह पाँचवाँ ग्रह है। यह ग्रह स्वयं प्रकाशमान नही
३२; उद्योग० : ११५ : १३) । है। सूर्य के प्रकाश से केवल चमकता है। इसका तल पृथ्वीतल के समान ठोस नही है। यह बालग्रह
पाद-टिप्पणी . कहा जाता है। इसे पृथ्वी की अवस्था पहुँचने मे द्वितीय पद के प्रथम चरण का पाठ संदिग्ध है। काफी समय लगेगा।
८. (१) हस्सन : फारसी इतिहासकारों ने ___ वैदिक साहित्य में बुद्धि, प्रज्ञा एवं यज्ञ का नाम हसन कच्छी दिया है। उसके वतन के कारण अधिष्ठाता माना जाता है। इसका नाम 'सदसस्पति' नाम पड़ा था। वह काश्मीर में केछ से आया था। 'ज्येष्ठराज' एवं 'गणपति' दिया गया है। (ऋ० : केछ या कछ क्षेत्र मकरान से लगा हुआ है । क्रम से १:१८:६-७; २ : २३ : १)। बृहदारण्यक बहराम तथा हस्सन ने ताज सिर पर रखा तत्पश्चात उपनिषद् में वाणीपति (बृ० : १ : ३ : २०-२१) हस्सन ने राजतिलक एवं माल्यार्पण किया। तथा मैत्रायणी संहिता एवं शथपथब्राह्मण में वाच- (२) राजतिलक : सुलतानों का राज्यास्पति कहा गया है (मै० सं०:२:६; श० ब्रा०: भिषेक हिन्दू तथा मुसलिम रीति दोनों तरहों से १४ : ४ : १)। उच्चतम आकाश के महान प्रकाश होता रहा है (जैन० : ३ : १२)। श्रीवर यह से बृहस्पति का जन्म हुआ है। जन्म प्राप्त करते स्पष्ट लिखता है कि तिलक हस्सन कोशेश ने किया ही, इसने महान् तेजस्वी शक्ति एवं गर्जन द्वारा था। कालान्तर में हस्सन को सुलतान ने धोखा अन्धकार दूर कर दिया ( ऋ० : ४ : ५०; १०: से दरबार में बुलवाकर अपने सम्मुख ही हत्या ६८)। इसे सप्तमुख, सप्तरश्मि, सुन्दर जिह्वा, तीक्ष्ण करवा दिया था (२ : ७७-८५)।