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जैनराजतरंगिणी
शस्त्राघातैर्मुमूर्षुः
सन्नुत्थितो
मेरकाककः ।
राज्ञ एवाशिषः कुर्वन् पुनः परशुना हतः ॥ ८० ॥
८०. शास्त्राघातों से मुमूर्षं होकर भी मेर काक' उठा और राजा को आशीर्वाद देते हुये, पुनः परशु द्वारा मार डाला गया ।
लिखन्नादमेराख्यः स विद्याव्यसनी गुणी । कस्य न शोच्यताम् ॥ ८१ ॥
तो जनमनः कान्तो ययौ
८१. विद्या - व्यसनी, गुणी एवं जन-मनोरम, अहमद को लिखते हुये, मार डाला गया । उसके लिये किसने शोक नहीं किया ?
जीवतां मनसा चैक्यं तेषां नित्यमभूद्यथा ।
शस्त्रकृत्ततनूद्गच्छच्छोणितैक्यमभूत्
८२. जिस प्रकार जीवित उन लोगों में नित्य मानसिक एकता थी, उसी प्रकार शस्त्रों से कटे शरीर से निकलते, रक्त में भी एकता हो गयी ।
वर्णकम्बल पृष्ठस्था जीवन्तस्ते निद्राणा इव ते तत्र मृता अपि
[२ : ८०-८५
तथा ।। ८२ ।।
८३. जीवित रहते, जिस प्रकार वे लोग रंगीन
मरने पर भी, वे इस प्रकार दिखायी दिये, मानों वे शयन कर रहे हैं ।
पाद-टिप्पणी ।
८०. (१) मेर: मीर काक । द्रष्टव्य टिप्पणी : २:७ ।
यथाभवन् । तथेक्षिताः ॥ ८३ ॥
पाद-टिप्पणी :
८३. ( १ ) वर्ण कम्बल रंगीन कम्बल | श्रीवर के वर्णन से प्रतीत होता है, मन्त्रीगण अपनी मन्त्रणा रंगीन कम्बल अथवा कालीन या गब्बा पर
क्षणमात्रात् तथा शस्त्रैर्मरणं राजवेश्मनि । अनन्यसुलभं तत्र श्लाघाईतामगात् ॥ ८४ ॥
तेषां
८४. क्षणभर में इस प्रकार शस्त्रों द्वारा राजगृह में उन लोगों का अनन्य सुलभ मरण भी प्रशंसनीय हो गया ।
न वित्तं न च दारास्ते न भृत्या न शवाजिरम् ।
तेषां तथा प्रमीतानां ययावन्तोपकारिताम् ।। ८५ ।।
८५. उस प्रकार मृत, उन लोगों के लिये, अन्त में न वित्त, न स्त्रियाँ और न शवाजिर उपकारी हुये ।
कम्बल' पर स्थित रहते थे, उसी प्रकार
बैठकर करते थे । उन दिनों टेबुल-कुरसी पर बैठकर मन्त्रिमण्डल की बैठक करने का रिवाज नहीं थी । सब कामकाज बैठकर किया जाता था । साधारण कम्बल से रंगीन कम्बल विशिष्ट होता था, यह मन्त्रियों के बैठने की विशिष्टता की ओर संकेत करता है । पाद-टिप्पणी :
८५. ( १ ) शवाजिर मजार, कब्र । श्रीवर