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२ : १५३-१५५] श्रीवरकृता
२९५ कुटीपाटीश्वरीप्राप्तं तत्सैन्यं दैन्यवर्जितम् ।
नारायणोदरोद्गच्छद्विश्वलोकभ्रमं व्यधात् ।। १५३ ॥ १५३. उत्साह सहित उसकी सेना कुटी पाटीश्वरी' पहुँचकर, नारायण के उदर से निकलते, विश्व लोक का भ्रम उत्पन्न कर दिया।
संप्लुष्टे भोगपालानां पुरे मद्राचितान्यपि ।
सुचिरं धूमितान्यासन् गृहाणि हृदयानि च ।। १५४ ।। __१५४. भोगपालों' का नगर जला दिये जाने पर, मद्रों से युक्त, उनके गृह एवं हृदय चिरकाल तक धूमिल रहे।
उन्नादहृदसंसङ्गतत्तुरङ्गतरङ्गिता
बाल्येश्वरगिरेः पादमूल प्रापास्य वाहिनी ॥ १५ ॥ १५५. उन्नत नाद करते ह्रद (बड़ा सर) सदृश उसके तुरङ्गों से तङ्गित, उसकी वाहिनी (सेना) बाल्येश्वरगिरि के पादमूल (निकट) में पहुंच गयी।
श्रीदत्त ने स्पष्टतया ज्यालमी को नदी झेलम नही पाद-टिप्पणी : माना है। बम्बई संस्करण में ज्यलेम पाठ मिलता १५५. (१) उन्नाद : श्रीदत्त ने उन्नाद को है। ज्यलेम, ज्यलम या ज्यली का अपभ्रंश
नामवाचक शब्द माना है परन्तु श्री कण्ठ कौल ने झेलम है।
उसे नही माना है । उन्नाद का शाब्दिक अर्थ हल्ला पाद-टिप्पणी:
तथा कलरव होता है। १५३. (१) कुटी पाटीश्वर : निश्चित स्थान
उन्नाद शब्द श्लिष्ट है । उत्कर्ष, उठाना, ऊपर के लिए अनुसन्धान की आवश्यकता है ।
ले जाना तथा जोर से नाद या ध्वनि अथवा चिल्लाना
होता है । सरोवर मे बाढ आती है, तो उसके बाढ की पाद-टिप्पणी :
ध्वनि होती है। लहरों की ध्वनि होती है। वह 'हृदयान' पाठ-बम्बई।
गरजने लगता है। उसी प्रकार घोड़ों के हिनहिनाने १५४. (१) भोगपाल : हर्षचरित में भोग- से, जोर की आवाज या चिल्लाहट होने लगती है। पति अथवा भोगक शब्द मिलता है। उसका अर्थ अतएव यह शब्द यहाँ दत्त के अनुसार नामवाचक राज्य का अधिकारी माना गया है। वह कृषि नही है । उत्पादन में राज्य का भाग वसूल करता था। (२) बाल्येश्वर : कल्हण ने बालकेश्वर एक भोगपति का अर्थ ईनामदार या जागीरदार किया लिंग का वर्णन ( रा०: ८ . २४३०) किया है। गया है । भोग एक क्षेत्र इकाई भी होती है। उनके परन्तु नही कहा जा सकता कि बाल्येश्वर एवं बालअधिकारी को भोग्यपति या भोगपाल कहते थे। केश्वर भिन्न-भिन्न है अथवा एक ही। श्रीवर के द्रष्टव्य : मिताक्षरा०:१: ३२.। . वर्णन से प्रकट होता है कि यह पर्वतीय स्थान था।