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२ : १४७-१४९] श्रीवरकृता
२९३ कालीधारामसिलतामिव वीक्ष्य तदाश्रिताम् ।
कम्पं के नात्र देशस्थाः प्रापुस्तद्भयतो जनाः ॥ १४७ ।। १४७. उन लोगों से युक्त, कालिधारा' को असि-लता सदृश देखकर, उसके भय से इस देश के कौन लोग कम्पित नहीं हुए ?
सेना दीन्नारकोटीयाः शिश्रियुस्तां भयच्छिदे ।
बलिभिर्मङ्गलादेवीमिवोन्नतभुवि स्थिताम् ।। १४८ ।। १४८. भय दूर करने के लिये दीनारकोट' की सेनाएं उसका आश्रय उसी प्रकार ग्रहण कर लीं जिस प्रकार भय दूर करने के लिये वलियों के द्वारा उन्नत भूपर स्थित मंगला देवी का आश्रय लें।
मद्रगक्खचिम्भशा राजहंसास्तमाययुः।
सरोवरमिव प्रोद्यच्छुक्लपक्षा विनिर्मलम् ।। १४९ ।। १४९. मद्र' गक्खड़ एवं चिम्ह (चिब्भ)३ देश के राजा लोग, उसके पास उसी प्रकार आये, जिस प्रकार शुक्ल पक्ष वाले हंस निर्मल सरोवर के समीप ।
(२) जयसिंह : राजौरी अर्थात् राजपुरी की अलग शासक होता था और अपनी रक्षा के लिए उक्त महिला का उल्लेख श्रीवर ने (जैन० : ३ . किला बना लेता था। २००) किया है। वहाँ उसे राजपुरी राजवंशीय तथा नाम जयमाला दिया है ( ३ : २००)।
'चिम्भ' पाठ-बम्बई। पाद-टिप्पणी :
१४९. ( १ ) मद्र : फारसी इतिहासकारों ने 'देश' 'प्रायुः' पाठ-बम्बई।
मद्र को जम्मू लिखा है। काश्मीर साहित्य में मद्र को १४७. (१) कालीधारा : यह किलदार स्थान काश्मीर की दक्षिणी सीमा पर माना गया है । सतहै। किलदार शब्द कालीधारा का अपभ्रंश है। लज तथा सिन्धु नदी की अन्तद्रोणी को बाहीक कहते आज भी कालीधारा द्वारा काश्मीर में जाने का थे। उशीनर, मद्र तथा त्रिगर्त उसमें सम्मिलित मार्ग है। कालीधारा पर्वतीय स्थान है।
था। वाहीक तथा गान्धार दोनों देशों के सम्मिलित द्र० : शुक० : १३७ ।
रूप की संज्ञा उदीच्य थी। जनरल कनिंघम के अनुपाद-टिप्पणी:
सार मद्र देश व्यास एवं झेलम के बीच का प्रदेश १४८. (१) दिन्नारकोट : अनुसन्धान ह ।
है (द्र० जोन० : ७१४)। अपेक्षित है।
(२) गक्खड़ : पखली अंचल का समीपस्थ (२) मंगला देवी : नौशेरा के पास एक छोटा भूखण्ड। किला है। यह एक खड़ी चट्टाने पहाड़ी पर बना (३ ) चिब्भ : राजपूतों का एक उपजाति है । है। इसका प्रवेश या वहाँ पहुँचना कठिन है। यह चिन्म देश । द्रष्टव्य : १ : १ : ४७ तथा १: उस समय का निर्माण है, जब प्रत्येक क्षेत्र का अलग- १ : १६७ ।