________________
२९०
जैनराजतरंगिणी
[२ : १३२-१३६ सर्वकार्यान्तरज्ञोऽयं क्षयं याति कदा नृपः ।
इति येऽप्यवदन् दुष्टास्तत्सुता विभवार्थिनः ॥ १३२ ॥ १३२. 'सब कार्यो के भेद का ज्ञाता, यह राजा कब नष्ट होगा', इस प्रकार उसके वैभवाकांक्षी एवं दुष्ट पुत्र कहते थे ।
पारसीभाषया काव्ये यदूचे दृषणा विशाम् ।
स शापः फलितो देशे श्रीमज्जैनमहीपतेः ॥ १३३ ॥ १३३. फारसी भाषा के काव्य में प्रजाओं के दोष के लिये, जो कहा गया है, वह शाप, (दण्ड) श्रीमद् जैन राजा के देश में फलित हुआ।
सेवकाः कितव'प्राया भुक्तप्रेष्या नियोगिनः ।
तच्छापादिव कालेन प्राप्तात्यन्तनिपीडनाः ॥ १३४ ॥ १३४. धूर्त प्राय चिरकालिक भृत्य, नियोगी२, सेवक, समय पर उसके शाप से ही मानो अत्यन्त पीड़ित हुए।
किमस्मद्रक्षको दैवहतो वृद्धो महीपतिः ।
इत्यादि सानुसाक्रन्दाः शुशुचुस्तेऽपि पार्थिवम् ॥ १३५ ।। १३५. 'क्या हमलोगों के रक्षक वृद्ध राजा को दैव ने मार डाला'--इस प्रकार आँसू गिराते, आक्रन्दन करते, वे लोग भी राजा के लिये शोक करने लगे।
स्वल्पोऽपि राज्यकालोऽभून्नवायामैः सुदुःसहः ।
निदाघरात्रिसंदृष्टदीर्घदुःस्वप्नसंनिभः ॥१३६ ॥ १३६. गर्मी की रात्रि में देखे गये, लम्बे स्वप्न के सदृश, थोड़े समय का भी राज्यकाल, नवीन विस्तार के कारण दुःसह हो गया।
पाद-टिप्पणी:
द्र०:२: ३०; ३ : ३०; क०रा०:६:८। १३२. उक्त श्लोक श्रीकण्ठ कौल संस्करण के पाद-टिप्पणी: श्लोक संख्या १३१ का द्वितीय तथा तृतीय पद है। १३५ 'साश्रुः' पाठ-बम्बई । कलकत्ता तथा बम्बई दोनों संस्करणों का श्लोक
. संख्या १३२ है।
१३६. (१) निदाघ : गर्मी = ग्रीष्म ऋतु । पाद-टिप्पणी :
निदाघ अर्थात् गर्मी की रात्रि छोटी होती है। परन्तु १३४. ( १ ) कितव : धूर्त, झूठा, कपटी। उस छोटी रात्रि में देखा गया स्वप्न लम्बा होता है ।
( २ ) नियोगी . कर्मसचिव, एक पदाधिकारी, इसी प्रकार कष्ट का काल यद्यपि राज्यकाल में बंगालियों की एक जाति । कश्मीर में यह पद तह- छोटा होता है, परन्तु पीड़ा के कारण वह लम्बा सीलदार का था (द्र० : क्षेमेन्द्र : नरमाला)। प्रतीत होता है ।