Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 406
________________ २ : १३७ - १४१ ] श्रीवरकृता लोत्रराशिगृहद्रव्यहरणैः तुतुषुस्तस्य भृत्यौघाः १३७. लूट की धनराशि, गृह के धन हरण तथा परपीड़न से, उसके भृत्य समूह अन्धकार से उल्लू के समान प्रसन्न हो रहे थे । परपीडनैः । कौशिका स्तिमिरैरिव ॥। १३७ ।। शय्यारूढो मधुक्षीवः प्रजाकार्यपराङ्मुखः । 1 सर्वं दिनं निनायान्तः स्वपार्श्वपरिवर्तनैः ॥ १३८ ॥ १३८ मदमत्त तथा प्रजा कार्य से परांमुख, वह (राजा) शय्या पर पड़ा, करवटें बदलते हुये, दिन-रात व्यतीत करता । कुलालगायनोद्गीतं गीतं शृण्वन् दिवानिशम् । गुणिभ्यो राजयोग्येभ्यो नादाद् दर्शनमात्रकम् ।। १३९ ॥ २९१ _१३९. वह (राजा) रात-दिन कुलाल गायकों के गीत को सुनता था और गुणी राज योग्य जनों को दर्शन मात्र नहीं देता था । शाहाभनराज्ये या संपन्नातिमनोहरा | लक्ष्मीपुरे राजधानी तां पुप्लोषोदितः शिखी ।। १४० ॥ १४० शाहाभदेन के राज्य में, लक्ष्मीपुर में, जो सम्पन्न एवं अति मनोहर राजधानी ( राजभवन ) थी, उसे उदित अग्नि ने भस्म कर दिया । या बलाढ्यम स्थाने वेश्माली विपुलाभवत् । तत्तत्पौरजनश्रिया ॥ १४१ ॥ सापि दग्धा समं तत्र पाद-टिप्पणी : १३९ ( १ ) कुलाल : प्रतीत होता है कोई कुम्भकार गायक था । उसका नाम कहीं नही दिया गया है - ब्रह्मायेन कुलाल वन्नियमतो ब्रह्माण्ड भाण्डोदरे ( भर्तृ' ० : २ : ९५ ) । १४१. बलाढ्य स्थान पर, जो विशाल वेश्मावलो थी, वह भी पुरवासियों के सम्पत्ति के साथ भस्म हो गयी । पाद-टिप्पणी : १४०. ( १ ) लक्ष्मीपुर: शहाबुद्दीन ( सन् १३५५ - १३७३ ई० ) चौथे सुल्तान की रानी का नाम लक्ष्मी था । शारिका शैलमूल में शहाबुद्दीन ने अपनी रानी के नाम पर लक्ष्मीपुर बसाया था ( म्युनिख : पाण्डु० : ५६ ) | श्री बजाज का मत है कि जहाँ यह नगर आबाद किया गया था उसे आजकल देवियागन कहते है ( डाटर्स आफ वितस्ता : १४१ ) । द्र० : टिप्पणी : जोन० : ४१० : लेखक । पाद-टिप्पणी : १४१. ( १ ) वलाढ्य : वर्तमान बलन्दियर मुहल्ला श्रीनगर है । पुराने छठें पुल के पास है । दिदमर के ऊपर है । द्र० : टिप्पणी : जोन० : श्लोक ८२ : लेखक - द्र० : ३ : १३९ ।

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