________________
२. १२८ - १३१ ]
1
राजा का दोष :
श्रीवरकृता
स माहिसफरो मासः प्रसिद्धो सर्वदर्शन विघ्ना न केषां
१२८. म्लेच्छ दर्शन' में प्रसिद्ध, वह माहे सफर मास, सभी दर्शनों के विघ्न के कारण, किन लोगों के लिये भयकारी नहीं हुआ ?
भूपं नित्यमदोन्मत्तं स्वतन्त्रं मन्त्रिमण्डलम् । उत्कोचहारिणः सर्वानन्तरङ्गांस्तरङ्गितान् ॥ १२९ ॥
१९. नित्य मदोन्मत्त राजा, स्वतन्त्र मन्त्रिमण्डल, उत्कोच ( घूस ) ग्राही सब अन्तरंग जनों तथा
दर्शिता बलपीडार्ति पण्डितानवलोक्य स्मृतश्रीजैन भूपालगुणमालस्तदा
म्लेच्छदर्शने । भयकार्यभूत् ॥ १२८ ॥
पाद-टिप्पणी :
१३०. अबलाओं को पीड़ित करने में पाण्डित्य दिखानेवाले लोगों को देखकर, जैन राजा गुण-राशि का स्मरण कर उस समय लोग
के
च ।
जनः ॥ १३० ॥
देशे सरुदिताक्रन्दं शुशोचात्यन्तदुःखितः । सर्ववृद्वश्चिरारूढोऽग्रस्तोऽदृष्टपराभवः
१२९. 'स्व' पाठ - बम्बई ।
२८९
१३१. देश में अत्यन्त दुःखी होकर, रोदन - आक्रन्दन पूर्वक शोकान्वित हुये, चिरकाल से पदारूढ़ सबलोगों में वृद्ध कभी पीड़ा एवं पराभव को न देखनेवाला - सब कार्यों के भेद का ज्ञाता, यह राजा कब नष्ट होगा, उसके पुत्र से धन की आशा से जो दुष्ट इस प्रकार कहते थे-
१३०. उक्त श्लोक श्री कण्ठ कौल के श्लोक जै. रा. ३७
पाद-टिप्पणी :
संख्या १२९ का तृतीय तथा १३० का प्रथम पद १२८. ( १ ) म्लेच्छ दर्शन : मुसलिम धर्म होता है । कलकत्ता तथा बम्बई दोनों संस्करणों का द्रष्टव्य टिप्पणी : २ : ९६ । श्लोक संख्या १३० है ।
( २ ) माहे सफर मास : इस्लामी दूसरा चन्द्रमास, जो मुहर्रम मास के पश्चात् पड़ता है । सफ़र शब्द अरबी है ।
पाद-टिप्पणी :
॥ १३१ ॥
पाद-टिप्पणी :
१३१. 'दृष्ट: ' पाठ - बम्बई ।
उक्त श्लोक श्रीकण्ठ कौल संस्करण के श्लोक संख्या १३० का द्वितीय तथा श्लोक संख्या १३१ का प्रथम पद है । कलकत्ता तथा बम्बई दोनों संस्करणों का श्लोक संख्या १३१ है ।