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________________ २७४ जैनराजतरंगिणी शस्त्राघातैर्मुमूर्षुः सन्नुत्थितो मेरकाककः । राज्ञ एवाशिषः कुर्वन् पुनः परशुना हतः ॥ ८० ॥ ८०. शास्त्राघातों से मुमूर्षं होकर भी मेर काक' उठा और राजा को आशीर्वाद देते हुये, पुनः परशु द्वारा मार डाला गया । लिखन्नादमेराख्यः स विद्याव्यसनी गुणी । कस्य न शोच्यताम् ॥ ८१ ॥ तो जनमनः कान्तो ययौ ८१. विद्या - व्यसनी, गुणी एवं जन-मनोरम, अहमद को लिखते हुये, मार डाला गया । उसके लिये किसने शोक नहीं किया ? जीवतां मनसा चैक्यं तेषां नित्यमभूद्यथा । शस्त्रकृत्ततनूद्गच्छच्छोणितैक्यमभूत् ८२. जिस प्रकार जीवित उन लोगों में नित्य मानसिक एकता थी, उसी प्रकार शस्त्रों से कटे शरीर से निकलते, रक्त में भी एकता हो गयी । वर्णकम्बल पृष्ठस्था जीवन्तस्ते निद्राणा इव ते तत्र मृता अपि [२ : ८०-८५ तथा ।। ८२ ।। ८३. जीवित रहते, जिस प्रकार वे लोग रंगीन मरने पर भी, वे इस प्रकार दिखायी दिये, मानों वे शयन कर रहे हैं । पाद-टिप्पणी । ८०. (१) मेर: मीर काक । द्रष्टव्य टिप्पणी : २:७ । यथाभवन् । तथेक्षिताः ॥ ८३ ॥ पाद-टिप्पणी : ८३. ( १ ) वर्ण कम्बल रंगीन कम्बल | श्रीवर के वर्णन से प्रतीत होता है, मन्त्रीगण अपनी मन्त्रणा रंगीन कम्बल अथवा कालीन या गब्बा पर क्षणमात्रात् तथा शस्त्रैर्मरणं राजवेश्मनि । अनन्यसुलभं तत्र श्लाघाईतामगात् ॥ ८४ ॥ तेषां ८४. क्षणभर में इस प्रकार शस्त्रों द्वारा राजगृह में उन लोगों का अनन्य सुलभ मरण भी प्रशंसनीय हो गया । न वित्तं न च दारास्ते न भृत्या न शवाजिरम् । तेषां तथा प्रमीतानां ययावन्तोपकारिताम् ।। ८५ ।। ८५. उस प्रकार मृत, उन लोगों के लिये, अन्त में न वित्त, न स्त्रियाँ और न शवाजिर उपकारी हुये । कम्बल' पर स्थित रहते थे, उसी प्रकार बैठकर करते थे । उन दिनों टेबुल-कुरसी पर बैठकर मन्त्रिमण्डल की बैठक करने का रिवाज नहीं थी । सब कामकाज बैठकर किया जाता था । साधारण कम्बल से रंगीन कम्बल विशिष्ट होता था, यह मन्त्रियों के बैठने की विशिष्टता की ओर संकेत करता है । पाद-टिप्पणी : ८५. ( १ ) शवाजिर मजार, कब्र । श्रीवर
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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