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श्रीवरकृता
इत्याद्यनुचिता निन्दा निन्दा प्रस्तावाद्विहितात्र यत् । क्षन्तव्या मोसुलैर्यस्मात् कविवाचो निरर्गलाः ।। ९७ ।।
९७. इस प्रकार प्रसंगवश, यहाँ जो अनुचित निन्दा की है, मुसलमान लोग उसे क्षमा करेंगे, क्योंकि कवि की वाणी निरंकुश होती है ।
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कृपण निन्दा :
ये
राजवैभवमवाप्य निपीय लोकं कुर्वन्ति संचयमतो न च
अत्युत्कटा घभरतत्फललब्धदुःखा
दानभोगौ ।
स्ते कोशरक्षणनिभावू वितरन्ति राज्ञः ।। ९८ ।।
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९८. जो लोग राज्य वैभव प्राप्त कर लोक को पीड़ित कर धन संचय करते हैं, दान एवं भोग नहीं करते, वे लोग अत्युत्कट पाप भार से, उसके फलस्वरूप, महान क्लेश प्राप्त कर, कोश - रक्षण के व्याज से राजा को दे देते हैं।
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और बौद्ध मे सुदूर प्राचीन काल से प्रचलित सम्मान्य समझते थे । केवल आत्महत्या या हत्यारों है । यहूदी, ईसाई तथा मुसलमान गाड देते का शव गाडा जाता था। ईसाई, मुसलमान आदि है । पारसी शव को खुला छोड देते है, ताकि पक्षी विश्वास करते है कि 'मृत का भौतिक शरीरोत्थान उन्हे खा जायँ । मिश्र के लोग ममी बना कर होगा ।' जजमेंट तथा कयामत के समय वे अपनी पिरामीड में रखते थे। मैने जेरूसलम में देखा है कि कब्रों से उठेंगे। धार्मिक अन्धविश्वास के कारण बाइबिल वर्णित जजों का शव लम्बी गुफा में रखा ईसाई एवं मुसलमान शवदाह की ओर आकृष्ट नही जाता था। इसी प्रकार बड़े-बड़े पत्थर के बक्सों मे हुए सन् १९०६ ई० मे क्रिमेशन एक्ट ब्रिटेन में शव को गुफा मे रख दिया जाता था। मैंने अपनी पास किया गया। उसके द्वारा शवदाह की अनुमति इसराइल की यात्रा मे इस प्रकार की बड़ी लम्बी दी गयी । गत वर्ष आस्ट्रेलिया में हिन्दुओं को गुफा देखा है जहाँ अलंकृत पाषाण बक्सों में शव शवदाह की आज्ञा नही दी गयी थी । पाश्चात्य रखा जाता था । बक्स के ऊपर नाम एवं ग्रामादि देशों में बिजली तथा तेल से शवदाह की प्रथा परिचय खोद दिया जाता था । संन्यासियों तथा जोर पकड़ती जा रही है। आदि पुराण में सर्पदंश से मृत विष खाकर तथा माता की बीमारी उल्लेख मिलता है कि मग लोग गाड़े जाते थे । में मरे, व्यक्तियों का जलप्रवाह किया जाता है । दरद एवं लोग सम्बन्धियों के शवों को वृक्ष मैंने अपने पिता के तीनों मामा जिन्हें मै भी मामा पर रखकर चल देते थे । महाभारत काल में भी कहता था काशी में ज्येष्ठ तथा कनिष्ठ का संस्कार यह प्रथा थी, जहाँ संकेत किया गया है कि पाण्डव किया तथा मझले मामा की इच्छानुसार उनका अपने अस्त्र-शस्त्रों को वृक्ष पर शव की तरह टॉग जलप्रवाह किया था। जलप्रवाह की प्रक्रिया है कि दिये थे ताकि कोई शब समझ कर उन्हें प्राप्त न शव को पत्थर के टाँका में बन्द कर जलधारा में कर सके। श्रीवर आधुनिक वैज्ञानिकों के समान छोड़ दिया जाता है। टांका में एक गोल छेद शवदाह के पक्ष में तर्क उपस्थित करता है । बना दिया जाता है। उसी से प्रवेश कर जtय पाद-टिप्पणी जलीय जन्तु शव को खा जाते थे। प्राचीन रोम में शवदाह
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९८. 'ल' पाठ-बम्बई ।