Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 393
________________ २७८ जैनराजतरंगिणी [२:९४-९६ अहो लोभस्य माहात्म्यं जीवद्वद् यन्मृता अपि । शवाजिरापदेशेन कुर्वन्त्यावरणं भुवः ।। ९४ ॥ ९४. अहो । आश्चर्य है !! इस लोभ के माहात्म्य पर, जो कि जीवित की तरह मृत भी शवाजिर के व्याज से भूमि का आवरण ( घेराव ) करते है । महान्तो हन्त कुर्वन्तु कृतयत्नाः शवाजिरम् । तन्निर्माणेन जीवन्ति कियन्तोऽपि बुभुक्षिताः ॥ ९५॥ ९५. हन्त ! प्रयन्तपूर्वक महान लोग शव प्रांगण का निर्माण करें क्योंकि उसके निर्माण से कितने ही भूखे लोग जीवित होते है ( जीविका चलतो है )। वन्धोऽन्यदर्शनाचारो हस्तमात्रे भुवस्तले । दग्धा यत् कोटिशो नित्यं सावकाशं तथैव तत् ।। ९६ ॥ ९६. अन्य ( हिन्दू ) दर्शन' का आचरण ही श्रेष्ठ है, जो कि हस्त मात्र भूतल पर, नित्य करोड़ों दग्ध होते हैं, तथापि वह उसी प्रकार खाली रहता है। कहते है । यहूदी लोग अनगढ पत्थर, जो प्रायः टूटी हो गयी है। इससे ईसाई, मुसलमान तथा अन्य शक्ल का होता है, लगाते हैं। उस पर भी नामादि जाति के कब्रों मे स्पष्ट भेद प्रकट होता है। वे लिखा रहता है। मुसलमान कब्रों के स्तम्भ पर भी सुविधापूर्वक पहचान मे आ जाते है। नाम आदि लिखा रहता है। उसमें एक ताख यहूदी भी कब्र बनाते हैं परन्तु वह कब्र के शिरोमेहराव के आकार का खोद दिया जाता है। उसमे भाग मे नाम, ग्राम परिचय अंकित टूटा या अनगढ़ चिराग रखा जाता है। कुछ लोग पत्थर पर पवित्र पत्थर लगाते है। यहूदी तथा ईसाइयों के कब्र मे कुरान की आयत अथवा सुभाषित अपनी रचना भेद प्रकट हो जाता है। मुसलिम कब्रिस्तान प्रायः खुदवा देते है। उपेक्षित टूटी-फूटी अवस्था में मिलते है। उन पर गत शताब्दियों की कबरे ईसाइयों की वर्तमान बैर या मौलसरी का वृक्ष लगाते हैं। है। लगभग तीन शताब्दियों के कब्रिस्तान ब्रिटिश पाद-टिप्पणी : शासन होने के कारण सुरक्षित अवस्था में है । उनमे ९५ 'कुर्वन्तु' पाठ-बम्बई। अंग्रेज तथा धर्म परिवर्तित ईसाई गाड़े जाते है । प्रत्येक पाद-टिप्पणी: ईसाई सम्प्रदाय का कब्रिस्तान अलग है। इसी प्रकार ९६. (१) दर्शन : दर्शन शब्द वर्तमान प्रचसैनिकों तथा सिविलियन, यूरोपियन तथा भारतीय लित शब्द धर्म, मत, मजहब या दीन के अर्थ में ईसाइयों का कब्रिस्तान है। गत शताब्दी के पूर्वकालीन राजतरंगिणीकारों ने प्रयोग किया है। हिन्दू धर्म कब्रों पर सुन्दर कलाकृतियाँ पाषाणमयी बनी है । उन के अनुसार शव का दाह करना, श्रेयस्कर माना गया पर क्रास नगण्य बना है। परन्तु नाम, ग्राम संक्षिप्त है। विश्व मे अन्तेष्टि के अनेक प्रकार प्रचलित परिचय एवं बाइबिल का वचन लिखा मिलता है। थे और है । दाह, समाधि या गाड़ना, जल प्रवाह, इस शताब्दी में ईसाई कब्रों के रूप में परिवर्तन हो खुला छोड़ देना, गुफाओं में सुरक्षित रखना अथवा गया है। शिरोभाग पर क्रास बनाना एक शैली ममी रूप में रक्षित रखना। दाहप्रथा, हिन्दुओं

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