Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 373
________________ २५८ जैनराजतरंगिणी [२. १५-२० सौवर्णकर्तरीबन्धसुन्दरा नृपमन्दिरे । ननन्दुर्मन्त्रिसामन्तसेनापतिपुरोगमाः ॥१५॥ १५. राज प्रासाद में सुवर्ण कटारी ( कर्तरी ) बन्द से शोभित मन्त्री, सामन्त, सेनापति, पुरोगामी (प्रधान-अग्रगामी ) लोग आनन्दित होते थे। पितृशोकार्पितानर्घपट्टांशुकविभूषणाः विचेरु सेवकास्तस्य तदन्तिकगताः सदा ॥ १६ ॥ १६. पितृ शोक के कारण प्रदान किये गये, बहुमूल्य पट्टाशंक से विभूषित, उसके सेवक सदैव उसके निकट विचरण करते थे। आसीद्राजा च सततं प्रकामं दोषनिष्क्रियः। स्वपक्षपालने सक्तः सन्ध्याक्षण इवोडपः ॥ १७ ॥ राजा की नीति : १७. दोषनिष्क्रिय राजा सन्ध्याकाल में चन्द्रमा के समान निरन्तर अपने पक्ष पालन में ही अति सलग्न रहता था। पक्षपातोक्षणापत्यप्रतिपालनतत्परः लोभक्रोधविरक्तात्मा मोहान्धक्षपणक्षमः ॥ १८ ॥ १८. पक्षपातपूर्वक सन्तान के पालन में तत्पर, लोभ-क्रोध से विरक्त, मोहान्धकार दूर करने में समर्थ सैदनासिरपुत्रो यः स मेर्जाहस्सनाभिधः । अहो तत्पितृवत् पूज्यो बहुरूपादिराष्ट्रभाक् ॥ १९ ॥ १९. सैय्यिद नासिर का पुत्र मेय्या हस्सन बहुरूप' आदि राष्ट्रों का अधिपति था । आश्चर्य हे ! वह अपने पिता के समान पूज्य था। उत्सवादिसदाचारसत्कारेषु सभान्तरे । त एव प्रथमं मान्यास्तद्राज्ये सर्वदाभवन् ।। २० ॥ २०. उसके राज्य में, सभा में, उत्सव आदि में, सदाचार में, सत्कारों में, वे लोग ही सर्वदा, प्रथम मान्य होते थे। (३) आदि : फिरिश्ता लिखता है बहुत से नाम बहुरूप है। दुन्त जिला के पश्चिम पीरपंजाल राजा जो उसके राज्याभिषेक उत्सव में सिकन्दरपुरी पर्वतमाला की दिशा में बहुरूप परगना का क्षेत्र मे आये थे-उन्हे भेंट देकर विदा किया (४७५)। था। बहुरूप नामक एक नाग भी है। उसी नाग के (४) अलंकृत : तवक्काते अकबरी में उल्लेख नाम पर परगना का नाम पड़ा है। यह नाग बीरू है-विभिन्न स्थान के राजाओं ने जो संवेदना तथा ग्राम में है। विशेष द्रष्टव्य टिप्पणी : जोन० : २५२ बधाई हेतु आये थे, उन्हे घोड़े तथा खिलअत देकर लेखक । द्र०:४:६१५ । सम्मानित किया ( ४४६-६७३)। पाद-टिप्पणी: पाद-टिप्पणी: २०. द्वितीय पद के प्रथम एवं द्वितीय चरण का १९. (१) बहुरूप : बीरू परगना का प्राचीन सन्दिग्ध है।

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