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जेनराजतरंगिणी
श्रुत्वेत्यवोचन्मत्पुत्रः
सत्यं
मदनुजाsप्रियः ।
किं तु ब्रवीमि येनायं रक्ष्यते कुटिलाशयः ॥ ६५ ॥
६५. यह सुनकर, राजा ने कहा- 'क्या सचमुच मेरा पुत्र मेरे भाई को अप्रिय है ?' किन्तु वह कहता हूँ, जिसके कारण इस कुटिल-हृदय (भाई) की रक्षा हो रही है—
उग्रो
दनुजस्तीक्ष्णो
मत्पदाक्रान्तिसूद्यतः । अनेन क्रष्टुमिच्छामि कण्टकेनेव कण्टकम् ।। ६६ ।।
६६. 'मेरा अनुज उग्र, तीक्ष्ण तथा मुझे पददलित करने के लिये प्रयत्नशील है, अतएव काँटे से काँटा निकालना चाहता हूँ ।
कार्यापेक्षावशादेतं रक्षामि न तु गौरवात् ।
श्रुत्वेति द्वित्रान् महतो व्यधाज्ज्ञातचिकीर्षितान् ।। ६७ ।।
६७. 'कार्य की अपेक्षावश इसकी रक्षा कर रहा हूँ न कि गौरववश ।' यह सुनकर, उस (पूर्ण) ने दो-तीन बड़े लोगों को राजा की इच्छा ज्ञात करायी ।
आदम खाँ का कश्मीर अभियान :
[ २ : ६५-६९
अत्रान्तरेऽग्रजो राज्ञो मद्रदेशाद् बलान्वितः । भ्रातृ राज्य जिहीर्षायै पर्णात्सं प्राप दर्पितः ।। ६८ ।।
६८. इसी बीच सेना सहित, गर्वीला राजा का ( बड़ा ) भाई', मद्र देश से भाई का राज्य हरण करने की इच्छा से पर्णोत्स' पहुँचा ।
तच्छ्र ुत्वा नृपतिः क्रुद्धस्तान् समानीय पैतृकान् ।
अवोचत् किं नु कर्तव्यं ते तमित्यूचुरुत्तरम् ॥ ६९ ॥
६९. यह सुनकर, क्रुद्ध राजा ने उन पैतृकों' को बुलाया और उनसे कहा- 'क्या करना चाहिये ?' उन लोगों ने उसको यह उत्तर दिया
।
में 'तूली' लिखा है । रोजर्स ने उसे लूलू ( जे० ए० एस० बी० : ५४ : १०७ ) हिस्ट्री आफ इण्डिया ( २८४ ) मे लूली लिखा है । पाद-टिप्पणी :
लिखा है
केम्ब्रिज
नाम
६६. (१) कण्टकनेव कण्टकम् : काँटा से काँटा निकालना । कण्टक शोधनम् चाणक्य का प्रसिद्ध वाक्य । उसका अर्थ है राज्य के कण्टकों को दण्डादि द्वारा दूर करना । 'पादलग्नं करस्थेन कण्टकेनैव कण्टकम् ।' चाणक्य शतक : २२ ।
पाद-टिप्पणी :
६८. (१) भाई : आदम खाँन । तवकाते अकबरी मे उल्लेख है— इसके पूर्व आदम खाँ अत्यधिक सेना एकत्र करके सुल्तान से युद्ध करने के लिये जम्मू की विलायत में पहुँचा (६७४) ।
(२) पर्णोत्स: पूंछ । द्र० १ : ३ : ११०; १ : ७ : ८०, २०८; २ : २०२४ : १४४ ६०७ । पाद-टिप्पणी :
६९. ( १ ) पैतृक : पिता के सम्बन्धियों, पिता के प्रिय पात्रों, कुल-वंशजों आदि से अर्थ अभिप्रेत है ।