Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 383
________________ २६८ जैनराजतरंगिणी [२:५८-५९ तन्त्रीवादविशेषज्ञो राजा व्यञ्जनधातुभिः । स्वयं वादननिष्णातो वैणिकानप्यशिक्षयत् ।। ५८ ॥ ५८. व्यञ्जन धातुओं द्वारा तन्त्री' वाद्य विशेषज्ञ तथा वादन में प्रवीण, राजा स्वयं वीणावादकों को भी शिक्षा देता था। रबाबवायरचनैर्बलोलद्यश्च गायनैः । राज्ञः प्रसादात् किं नाप्तं तत्तत्कनकवर्षिणः ॥ ५९॥ ५९. रबाव' वाद्य के रचनाकर्ता बहलोल आदि गायकों ने तत्-तत् प्रकार से कनकवर्षी राजा की कृपा से क्या नहीं प्राप्त किये? रहता है। नीचे की ओर काष्ठ का कच्छप (कर्म) पाद-टिप्पणी : के पीठ के आकार का एक टुकड़ा होता है। उसका ५९. (१) रबाब : एक मत है कि ईरानी भीतरी हिस्सा खोखला होता है। इसके ऊपरी भाग- वाटा है। मसलिम काल में इस वाद्य का प्रवेश पर घुड़च होती है। जिस पर से दण्ड पर चिपकायी भारत तथा काश्मीर में हुआ था। परन्तु तानसेन हुई, सारिकाओ के ऊपर से तार फैलाये होते है। से शताब्दी पूर्व श्रीवर स्पष्ट लिखता है कि इसकी इस वीणा में प्रायः सात तार होता है। इसमे से रचना बहलोल आदि की है। रबाब का विकास चार तार सारिकाओं के ऊपर से जाती है और एवं निर्माण काश्मीर में हुआ था। तानसेन ने इस तीन तार बगल मे होती है। ऊपर के चार तारों वाद्य को अपनाया था। उसके वंशजो का यह प्रिय मे से दो लोहे की होती है और दो पीतल की। बाद्य रहा है। इसके वादन द्वारा उन्होंने मुसलिम बगल की तीन तारें लोहे की होती है । तारें खूटियों दरबारों में प्रश्रय पाया था। में बंधी होती है। इस वीणा के नीचे वाले भाग की रबाब सारंगी के समान बाजा है। काश्मीर के पीठ कछुए के पीठ जैसी होती है। इसलिये इसे रबाबिया आज भी प्रसिद्ध है। सारंगी और रबाब कच्छपी वीणा कहते है। मे अन्तर यह है कि रबाब का पेट सारंगी की पाद-टिप्पणी : अपेक्षा लम्बा होता है। सारंगी से ड्योढ़ा गहरा ५८. (१) तन्त्रीवाद : तन धातु से तन्त्री शब्द होता है। पेट के ऊपर का दण्ड सारंगी से पतला बना है । तन्त्री अर्थात् तार, बाल, बिल्ली की आँत, हाता है। इसम दा घुड़च हाता है। एक पट के लोहा, धातु का बना होता है। उनके आधार पर मध्य में और दूसरी दण्ड के आरम्भ में। रबाब में बना वाद्य तन्त्रीवाद्य कहा जाता है। वीणा, रबाब, ताँत के सात तार लगे होते हैं। जिसमें सात स्वरों सितार, सांरगी आदि की गणना तीवार में स, रे, ग, म, प, द, नी की स्थापना की जाती है। होती है। इसे जवा और कमान दोनों से बजाया जाता है। अरबी में तन्त्रीवाद्य को अल ऊद कहते है। । आइने अकबरी में छ तार के रबाब का उल्लेख आइन अ अरबी में 'ऊद' का अर्थ सुगन्धित लकड़ी होता है। मिलता है। अंग्रेजी मे लकड़ी को 'ऊड' कहते है। यही शब्द तवक्काते अकबरी में उल्लेख है कि सुल्तान अल ऊद अपभ्रंश रूप में फ्लूट बन गया । अरबी जब प्रसन्न होता था तो रबाब और वीणा तथा अन्य ऊद ३ से ५ तार होते है। वाद्य-यन्त्र सुवर्ण के बनवाये तथा उनमे रत्न जड़े गये

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