________________
२५६
जैनराजतरंगिणी
[२ : ९-११ स हाज्यहैदरनृपो घनकालोर्जितप्रभः ।
धाराधर इव धरां दधार धरणीधरः ॥९॥ ९. घन काल से प्रवृद्ध, प्रभाशाली मेघ सदृश, वह धरणीधर हाजी हैदर ने धरा को धारण किया।
सोऽनुजं स्वसमं भूमिनायकः सुक्षिते रसात् ।
बहामखानं नाग्रामदेशे तं स्वामिनं व्यधात् ॥ १० ॥ १०. उस भूमि-नायक ने प्रेमवश, अपने समान अनुज, उस बहराम खांन को सुक्षित ( सुन्दर भूमि ) नाग्राम देश का स्वामी बना दिया।
क्रमराज्येक्षिकादेशे स्वामिनं स्वसुतं व्यधात् । चिरान्निजसुतप्राप्त्या यौवराज्यसुखादपि ।
पितृशोकहतोऽप्यन्तर्विश्रान्तिमभजन्नृपः ॥११॥ ११. अपने पुत्र को क्रमराज' एवं दक्षिका देश का स्वामी बना दिया। चिरकाल पश्चात् अपने पुत्र की प्राप्ति से पितृ शोक के कारण दुःखी नृपति ने युवराज सुख से भी अधिक अन्तःशान्ति प्राप्ति की।
हिन्दू राजाओं के समान मुसलिम सुलतान भी तथा नाग्राम राष्ट्र लिखा है (१. १४१, १८१, अभिषेक के समय हवन करते थे। शेखुल इसलाम २:४)। नाग्राम की जागीर समय-समय पर तथा मन्त्रीगण राजा को तिलक लगाते थे। सुवर्ण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को सुल्तानों ने दिया है। तथा पुष्प देते थे ( मोहिबुल : पृष्ठ २४० )। (म्युनिख : पाण्डु० : ७७ बी०)।
हैदरशाह की पत्नी का नाम गल खातन था। तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है-बहराम खाँ वह हिन्दू रीति-रिवाज मानती थी।
को नाकाम ( नाग्राम) नामक जागीर प्रदान कर फिरिश्ता के अनुसार अनुज वैराम खांन ने
कर दी (४४६ )।
पा(४४९ ज्येष्ठ भ्राता हाजी खांन का हैदर नाम से राज्या
पुरानी फ़ारसी लिपि मे काफ और गाफ एक भिषेक किया ( ४७५ )।
तरह से लिखा जाता था। अतएव नाग्राम को नाकाम पाद-टिप्पणी :
पढ़ या लिख देना आश्चर्य की बात नही है। बम्बई तथा कलकत्ता संस्करण का उक्त श्लोक फिरिश्ता ने भी 'नाकाम' ही लिखा है कि अनज १०वा है।
बहराम खाँ को नाकाम ( नाग्राम ) की जागीर दी १०. (१) बहराम खां : पीर हसन लिखता
गयी (४७५ )। है कि सुलतान ने उसे अपना वजीर बनाया (१० : नाग्राम ग्राम दूधगंग के दक्षिण तट से कुछ दूर १८७)।
श्रीनगर से ११ मील पर स्थित है। श्रीनगर से (२) सूक्षित : श्रीदत्त ने शब्द को नाम- चरार शरीफ जानेवाली सड़क पर है। मजेट मूल वाचक माना है। इसका अर्थ यहाँ सुन्दर भूमि जो बादामी रंग रंगने के काम में आता है, यहाँ किया गया है।
मिलता है । लद्दाखी मे इसे त्सतो कहते है। (३) नाग्राम : वर्तमान नागाम है। यह स्थान पाद-टिप्पणी: चाथ के उत्तर है। नागाम परगना, कामराज पाठ-बम्बई। अर्थात क्रमराज में है। शुक ने इसे नाग्राम कोट ११. कलकत्ता संस्करण में प्रथम पद 'क्रमराज्ये