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२ : ४७-५०] श्रीवरकृता
२६५ नापितो निघृणः पापी क्रोधी क्रकचपाटितान् ।
पैतृकाष्ठक्कुरादींश्च कारयामास भूपतेः ॥ ४७ ॥ ४७. निर्दयी, पापी एवं क्रोधी उस नापित ने राजा के पैतृक ( पिता सम्बन्धी ) ठक्कुरादि' को आरा से चिरवा दिया।
चलितानग्रजभ्रातः स्वावनायान्तिकं पथि ।
रुद्धवा शूलेऽधिरोप्यान्यान् पञ्चषानप्यघातयत् ॥ ४८॥ ४८. अपनी रक्षा के लिये ज्येष्ठ भ्राता के पास जाते हुये, मार्ग में रोक कर, पाँच-छः को शूली पर चढ़ा कर मरवा डाला।
जीवन्तो गणरात्रं ते स्वकुटुम्बोक्तवेदनाः ।
पौरैः सानुजलैदृष्टाः शूलपृष्ठे पुरान्तरे ॥ ४९ ॥ ४९. आँखों में आँसू भरे पुरवासी, नगर मे शूली पर कई रात जीवित रहते, उन लोगों को देखें, जो अपने कुटुम्बियो के प्रति, वेदना प्रकट कर रहे थे।
वैदूर्यभिषजं ज्ञात्वा दूषकं परपक्षगम् ।
अमुञ्चद् बन्धनात् कृत्तभुजनासोष्ठपल्लवम् ॥ ५० ॥ ५०. वैदूर्य' भिषग को दूषक एवं पर पक्षगामी जानकर, हाथ, नाक और ओष्ठ-पल्लव काटकर, बन्धन मुक्त किया।
पाद-टिप्पणी :
ऊपर जाकर नीचे की ओर आता है। यह अत्यन्त ४७. (१) ठक्कुर : द्रष्टव्य : १:१:४४: क्रूर प्रथा थी । अब बन्द हो गयी है। ३ : ४६३, ४ : १०४, ३५३ ।
पाद-टिप्पणी : पाद-टिप्पणी :
४९. (१) शूल : सुदूर प्राचीन काल काश्मीर 'अघातयत' पाठ-बम्बई ।
में शूल पर, आरोपित करने की प्रथा प्रचलित
रही है। ४८. ( १) शूल : यह क्रूर प्रथा समस्त विश्व में प्राचीन काल में प्रचलित थी। स्थानभेद के ।
पाद-टिप्पणी : कारण शूल अर्थात शूली पर चढ़ाने की क्रिया में ५०. (१) वैदूर्य : इस व्यक्ति का कहीं और अन्तर था। दण्डित एक नुकीले लोहदण्ड पर उल्लेख नहीं मिलता। नाम का पाठ वैडूर्य भी बैठा दिया जाता था। दण्डित के शिर पर मुगरा से मिलता है। परन्तु वैदूर्य नाम ठीक है। वैदर्य एक आघात किया जाता था। तीक्ष्ण लौहदण्ड गुदा प्रकार की नीलम मणि है। स्थान से घुसता शिर की ओर चलता था। दण्डित (२) नाक : हाथ, पैर, नाक, कान कटवाना व्यक्ति ऊर्ध्व से अधोभाग की ओर उसी प्रकार मुसलिम काल मे साधारण प्रथा थी । ओष्ठ कटवाना सरकता था, जिस प्रकार माला का दाना सूई मे नयी बात थी । इससे घोर क्रूरता प्रकट होती है ।
जै. रा. ३४