Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 375
________________ २६० जैनराजतरंगिणी [२ : २६-२९ कांश्चित् संन्नभयान् कांश्चित् संधाय प्रतिपालयन् । कांश्चिदुन्मूलयन् नीत्या नानावृत्तिरभून्नृपः ॥ २६ ॥ । २६. नृपति नीति से, कुछ लोगों का भय दूर करते हुये, कुछ लोगों को सन्धि कर, प्रतिपालन करते एवं कुछ लोगों का उन्मूलन करते हुये, नाना प्रकार का व्यवहार किया। प्रसादकृत् स भृत्यानामभूद् वैश्रवणोपमः । मनागप्यपराधेन बभूवान्तकसंनिभः ॥ २७ ॥ २७. कुबेर सदृश यह राजा भृत्यों पर अनुग्रह किया और थोड़े ही अपराध से यमराज' सदृश सिद्ध हुआ। पयःपितृसुतामात्यफिर्यडामरकादयः विचार्यासहनं कोपे बभूवुर्वतयन्त्रणाः ॥ २८ ॥ २८. सुत, आमात्य, फिर्य डामर आदि उसके अत्युग्र क्रोध का विचार कर, भीतर ही भीतर दुःखी होने लगे। सामाजिक स्थिति : चौरा जाराश्च रिपवो भृत्या दुर्णयकारिणः। अह्नीव जम्बुकाश्चेरुस्तद्राज्ये भयविह्वलाः ॥ २९ ॥ २९. दिन में शृगाल' सदृश, उसके राज्य में चोर, जार', रिपु, दुर्नयकारी भृत्य, भयविह्वल होकर, विचरण करते थे। पाद-टिप्पणी : १९७, ३३५, ३५४, ४१७ । २७. (१) अनुग्रह : तवक्काते अकबरी उसके पाद-टिप्पणी : आचरण के सम्बन्ध में लिखती है-'वह स्वाभाविक २९. (१) शृगाल : दिन मे शृगाल भय से रूप से दानी था। किन्तु उसके हृदय में प्रतिकार किसी गुफा या झाड़ी मे छिपा रहता है। बाहर नही की भावनायें थी' (४४६ = ६७३) । (२) यमराज : धर्मराज । द्रष्टव्य टिप्पणी निकलता किन्तु रात्रि होते ही आवाज करते, बाहर १:१: २३ । शिकार की खोज में निकलते है। सुल्तान का राज्य पाद-टिप्पणी: शासन कमजोर हो गया था। शृगालों के समान जो पाठ-बम्बई। आततायी दिन में लोकलज्जा एवं दण्डभय से नहीं प्रथम पद के प्रथम चरण का पाठ संदिग्ध है। निकलते थे, वे भी स्वतन्त्र निर्भय विचरण करने लगे २८. (१) फिर्य डामर : द्रष्टव्य टिप्पणी थे। दिनदहाड़े चोरी आदि होने लगी थी। श्लोक १:१: ९४; २ : ७२; : ३ : ५४, ६८, (२) जार : उपपति-प्रेमी = आशिक ।

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