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२:२१-२५]
श्रीवरकृता
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एतान्यक्षाश्रयान्मद्वद्भाव्ययं बलवानिति ।
मेर्जाहस्सनपुत्र्याः स पाणिं पुत्रमजिग्रहत् ॥ २१ ॥ २१. 'इसके पक्ष का आश्रय लेने से मेरे समान यह भी बलवान हो जायगा'-अतः उसने पुत्र का मिर्जा हस्सन की पुत्री से पाणिग्रहण करा दिया।
हृत्वा ज्यंसरमार्गेशात्स ज्यहागिरमार्गपे ।
बाङ्गिलं प्रददौ राजा तद्गुणाकृष्टमानसः ॥ २२ ॥ । २२. उस राजा ने वाङ्गिल' को ज्यशर मार्गेश से लेकर, गुणों से आकृष्ट होकर, ज्यहाँगीर मार्गपति को प्रदान किया।
चक्रे कृतापकाराणामप्यनुग्रहमेव सः।
प्रणम्य सिंहः पूर्वं हि हन्ति दन्तिगणं ततः ॥ २३ ॥ २३. उसने अपकार करनेवालों पर भी अनुग्रह किया, सिंह पहले प्रणाम करके ही पश्चात् हस्ति समूह का हनन' करता है।
गूढभावो महीपालस्तत्तच्चेष्टां चरैर्विदन् ।
तदा हस्सनकोशेशं संमान्याधिकृतं व्यधात् ।। २४ ॥ २४. उस समय राजा ने भावों को गुप्त रखकर, गुप्तचरों द्वारा तत्-तत् चेष्टा को जानते हये, कोशेश हस्सन को सम्मान्य अधिकारी बना दिया।
प्रतापतापितारातिश्छन्नकोपो महीपतिः।
भस्मान्तरगतो वह्निरिवासीत् परमृत्युदः ।। २५ ॥ २५. भस्म मध्यगत अग्नि सदृश, राजा प्रताप से शत्रुओं को तापित कर, कोप को प्रच्छन्न रखकर, अत्रुओं के लिये मृत्युपद हुआ। पाद-टिप्पणी :
* में इसे वंकाल लिखा गया है। द्रष्टव्य टिप्पणी : २१. (१) पाणिग्रहण : मुसलमानों में पाणि- ३ : ३८०, ४५८,४ : १०७, ३४८, ६१४ । ग्रहण नही होता। विवाह अर्थ मे पाणिग्रहण शब्द (२) ज्यंसर = जमशेद : श्री जोनराज ने का प्रयोग किया गया है।
शाहमीर वंश के द्वितीय सुल्तान जमशेद का नाम पाद-टिप्पणी:
ज्यसर दिया है (जोन० श्लोक ३१६-३३८)। यह पाठ शात्स-बम्बई
फारसी नाम जमशेद का संस्कृत रूप है। २२. (१) वाङ्गिल : इसका प्राचीन नाम भांगिल है। पारसपोर अर्थात् परिहासपुर.कछार के पश्चात वांगिल जिला पड़ता है। फिरूजपर और २३. (१) हनन : श्रीवर सिंह के व्याज से पाटन के मध्य है। क्षेमेन्द्र ने इसे काश्मीर को २७ राजा को कपटी कहता है । छल से राजा ने अनेक विषयों अर्थात् परगनों में रखा है। आइने अकबरी वधादि अपने समय में करवाया था।