Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 377
________________ २६२ जैनराजतरंगिणी [२:३३-३७ पूर्ण नापित का प्रभाव : कुकृत्यप्रेरकः पापश्चान्यायोत्कोचहारकः । प्रियोऽभवदिवाकीर्ती राज्ञो रिक्ततराभिधः ।। ३३ ॥ ३३. कुकृत्य-प्रेरक, पापी, अन्यायपूर्वक उत्कोच ( घूस ) ग्रहणकर्ता, पूर्ण' नामक नापित राजा का प्रिय हुआ । कामीव व्यसनं नित्यमुपालब्धोऽपि भूभुजा । यं त्यक्तुं नाशकद्राजा संस्तवाद्धृदयङ्गमम् ॥ ३४॥ ३४. राजा द्वारा नित्य उपालम्भ प्राप्त करने पर भी, जिस प्रकार व्यसन को नहीं त्यागता है, उसी प्रकार अति परिचयवश राजा, उस हृदयंगम नापित का त्याग नहीं कर सका। संचितार्थः प्रजायासैद्रादानादिकर्मभिः । आसीत् स्वकार्यकुशलः ख्यातो धूर्तः स नापितः ॥ ३५॥ ३५. मुद्रा आदि कर्मों द्वारा प्रजापीड़नपूर्वक धन संचित करनेवाला, प्रख्यात धूर्त वह नापित अपने कर्म में परम कुशल था। रुद्धं चित्तेन काठिन्यं माधुर्य जिह्वया धृतम् । शठस्य यस्य सततं लोकोद्वेजनकारकम् ॥ ३६॥ ३६. जिस सठ का चित्त द्वारा रुद्ध काठिन्य, जिह्व द्वारा धृत माधुर्य, निरन्तर लोगों को उद्वेजित करनेवाला हुआ। येनाधिकाराद् देशेऽस्मिन् प्रजाः कुकर्मभिः कृताः । दुःखिता रक्षिताः पूर्व पुत्रवच्छीमहीभुजा ॥ ३७॥ ३७. अधिकार के कारण इस देश में कुकर्मों द्वारा, उन प्रजाओं को जिसने दुःखी किया, जिनको राजा ने पहले पुत्रवत् रक्षित किया था। पाद-टिप्पणी: उसने बोली (लूली ) नामक एक नाई को अपना ३३. (१) रिक्तेतर : पूर्ण = लोली या लूली। विश्वासपात्र बना लिया था और जो कुछ भी वह श्रीदत्त ने 'रिक्तेतर' को नामवाचक शब्द माना कहता था उसके अनुसार आचरण करता था है । उनका मत है कि यही व्यक्ति बाद में पूर्ण (४४७ = ६७३ ) । नाम से सम्बोधित किया गया है (३ : १८६ )। श्रीकण्ठ कौल ने इसे नामवाचक शब्द नहीं माना। फिरिश्ता नाम 'बूबी' देता है, वह लिखता है। हसनशाह के समय में इसकी हत्या कर दी ही है-'उसने नापित बूबी से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित गयी थी। पीर हसन ने नाम लोली लिखा है। कर लिया था। वह जनता और सुल्तान के बीच अन्य फारसी इतिहासकारों ने भी लोली दिया है माध्यम था। वह जनता से खूब घूस काम करवाने (पीर हसन : १८८)। के व्याज से लेता था ( ४७५ )।' द्र०:२ : ५२, तवक्काते अकबरी में उल्लेख मिलता है- १२२, ३ : १४८ ।

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