________________
मंगलाचरण :
द्वितीयस्तरंगः द्वितीय तरंग
वन्दे विश्वमयं देवं सर्ववाङ्मन्त्रनायकम् । यदंशवर्णनस्तुत्या तत्पूजाफलभाङ्
१. समस्त वाक् मन्त्र के नायक विश्वमय उस देव की वन्दना करता हूँ, जिसके अंश मात्र वर्णन स्तुति से, उसके पूजा का फलभागी कौन नहीं होगा ?
पादो दक्षिण एष यच्छति पदं यत्रैव नाटयेच्छया
तत्रैवेच्छति नाम वामचरणः सञ्चारसंस्कारतः ।
इत्थं मण्डलमण्डिता समपदां चारों नरीनर्ति यः
सन्ध्यायां स सदा ददातु सुखितां देवोऽर्धनारीश्वरः || २ ||
२. यह दक्षिण पाद नर्तन इच्छा से जहाँ पर आधार देता है; वहीं पर, संचार संस्कारवश
वाम चरण पग देना चाहता है; इस प्रकार सन्ध्या समय, जो मण्डलाकार शोभित श्रम पदकारि नृत्य करते हैं, वह भगवान अर्धनारीश्वर सुखभाव प्रदान करें ।
हैदर शाह ( हाजी खां ) सन् १४७० - - १४७२ ई०) :
अथ हैदरशाहाख्यां ख्यापयन् हाज्यखानोऽग्रहीद् राज्यं स
न कः ।। १ ।।
पाद-टिप्पणी :
१. ( १ ) मंगलाचरण प्रत्येक तरंग का आरम्भ कल्हण एवं शुक ने मंगलाचरण से किया है। जोनराज की तरंगिणी केवल एक तरंग है । उसमें भी प्रारम्भ में वन्दना की गयी है । प्राचीन काव्य-प्रणयन की शैली है कि कवि इष्टदेव का स्मरण करता है । कल्हण आदि सभी राजतरंगिणी -
मुद्रिकार्पणैः । ज्यैष्ठप्रतिपद्दिने || ३ ॥
३. मुद्रांकण' द्वारा 'हैदरशाह" नाम प्रख्यात करते हुये, उस हाज्यि खान ने ज्येष्ठ प्रतिपद के दिन राज्य ग्रहण किया ।
कारों ने अर्धनारीश्वर की वन्दना की है । श्रीवर उसी परम्परा का निर्वाह करता है ।
पाद-टिप्पणी :
( २ ) पाठ - बम्बई |
पाद-टिप्पणी :
३० ( १ ) मुद्रांकण : हैदरशाह नाम से सीलमुहर जारी करना अभिप्रेत है। यह राज्यप्राप्ति का