Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 362
________________ जैनराजतरंगिणी [१:७ : २६१-२६४ पौराः शुक्रदिने भान्ति यत्रान्तःप्रतिबिम्बिताः । राज्ञव निकटं नीताः कुतूहलतयात्मनः ॥ २६० ।। २६०. शुक्रवार के दिन जिस स्फटिक शिला में प्रतिबिम्बित होकर, पुरवासी सुशोभित होते हैं, राजा मानों उन्हें कुतूहलवश अपने निकट ले आये। कवाटविकटं वक्षो मुखं पूर्णेन्दुसुन्दरम् । शुकवदीर्घनासाग्रं नेत्रे कमलकोमले ॥ २६१ ॥ २६१. कवाट सदृश विकट वक्षस्थल, पुर्णेन्दु सुन्दर मुख, शुकवत् लम्बी नासिका, कमल कोमल नेत्र भ्रलेखे लोमशे भालं प्रभालम्भितलक्षणम् ।। सा बुद्धिस्ते गुणास्ताश्च राज्यकार्यावधानताः ॥ २६२ ॥ २६२. रोमपूर्ण भ्रूलेखायें प्रभा से सुलक्षण भाल, वह बुद्धि, वे गुण राज्यकार्य में वे सावधानियां स्मारं स्मारं जनः सर्वो राज्ञः पुर इव स्थितः । पर्यन्तनीरसासारं संसारं निन्दते न कः ।। २६३ ॥ २६३. राजा के समक्ष स्थित सदृश होकर, सब लोग बार-बार स्मरण किये और अन्त में नीरस एवं निस्तत्व संसार की निन्दा किसने नही की ? ज्योत्स्ना पूर्णसुधाकरस्य कुसुमोत्कर्षो वसन्तस्य यत् सौभाग्यं शरदि प्रसन्ननभसो नार्या नवं यौवनम् । राज्ये चैव विवेकिनो नरपतेयत सर्वसौख्यप्रदं धाता तत् कुरुते स्थिरं यदि जने स्वर्गार्जने न स्पृहा ॥ २६४ ॥ __ २६४. पूर्ण चन्द्रमा की ज्योत्स्ना, वसन्त का कुसुमोत्कर्ष, शरद के निर्मलाकाश का सौन्दर्य, नारी का नवयौवन तथा राज्य में विवेकी राजा का सबको सुख प्रदान करना, ( उन्हें ) यदि विधाता व्यक्ति में स्थिर कर दे, तो स्वर्ग जाने की प्रति स्पृहा लोगों में न रह जाय । पाद-टिप्पणी : पाद-टिप्पणी : २६०. (१) शुक्रवार = जुमा । मुसलमान लोग २६१. (१) रूप वर्णन : श्रीवर जैनुल आबजुमा को पवित्र दिन और उस दिन मृत्यु होना अच्छा दीन के स्वरूप का वर्णन करता है। जोनराज तथा मानते है । पैगम्बर मुहम्मद साहब का देहान्त सोमवार अन्य परशियन इतिहासकारों ने सुल्तान के रूप का को हुआ था । शुक्रवार का मरना शुभ है । यह मुस- वर्णन नहीं किया है । श्रीवर के वर्णन से जैनुल आबलिम शास्त्रीय परम्परा नही केवल एक मान्यता मात्र दीन के रंग-रूप की कल्पना की जा सकती है। है। इससे यह भी प्रकट होता है कि शुक्रवार के दिन पाद-टिप्पणी सुल्तान के कब्र पर, आदर प्रकट करने अथवा सुल्तानप्रेमी मुसलमान फातिहा पढ़ने जाते थे। २६२. 'लम्भित्' पाठ-बम्बई।

Loading...

Page Navigation
1 ... 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418