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जैनराजतरगिणी
[१:७ : २५३-२५७ ग्रीष्मपानीयदानेन तृप्त्यर्थं तत्प्रदायिनाम् ।।
बहूनां प्रददौ क्षोणीमहार्यां धर्मसात्कृताम् ।। २५३ ॥ २५३. ग्रीष्म ऋतु में जलदान द्वारा तृप्ति के लिये, न्यास कर दिया, तथा बहुत से जल प्रदाताओं को सदैव के लिये, धर्म हेतु भूमि प्रदान की।
राज्ञानेन विना शून्यां नास्मि मामीक्षितुं क्षमः ।
इतीव दुःखात् तत्कालं स्वमब्धौ रविरक्षिपत् ।। २५४ ।। २५४. इस राजा के बिना, शून्य पृथ्वी को देखने में समर्थ नहीं हूँ, मानों इसी दुःख से तत्काल रवि स्वयं को सागर में डाल दिये।
सन्ध्याभ्रशाटीमुत्सृज्य रोदनार्थमिवेशितुः ।।
शुचेव विस्तृतं चक्रे तमःकचचयं क्षितिः ।। २५५ ॥ २५५. राजा के शोक के कारण ही मानों, पृथ्वी सन्ध्याकालीन अभ्र शाटी ( साड़ी) त्यागकर, अन्धकार रूप केशपाश विखरा दिये।
आशाप्रकाशके वन्यदर्शने गुणिवान्धवे ।
परलोकं गते तस्मिन् मण्डले प्रोदभूत् तमः ।। २५६ ॥ २५६ आशा प्रकाशबन्ध दर्शन, गुणी बान्धव', उसके ( राजा-सूर्य ) चले जाने पर, उस मण्डल में अन्धकार छा गया।
तदिने रन्धनाभावाद् गृहधूमविवर्जिता ।
शोकमूका निरुच्छ्वासा निर्जीवेवाभवत् पुरी ।। २५७ ।। २५७. उस दिन रन्धन' के अभाव में गृह धूम से रहित, शोक से मूक, स्वामि-रहित, पुरी निर्जीव सदृश हो गयी।
यह स्थान चन्द्रभागा नदी के वाम तट पर है। करता है । राजा जनता की आशा पूर्ण करता है। लिदरखोल के संगम के दूसरी तरफ है। इस पर (२) गणी : शब्द श्लिष्ट है । गुणियों का और अनुसन्धान की अपेक्षा है ।
( राजा ) आदर करता है। गुण का अर्थ कमल है। पाद-टिप्पणी :
उसका बान्धव सूर्य है। २५४ 'शून्यां' पाठ-बम्बई ।
पाद-टिप्पणी: पाद-टिप्पणी:
पाठ-बम्बई। 'प्रकाशके' पाठ-बम्बई।
२५७. (१) रन्धन : द्र० : बहारिस्तान २५६. (१) आशा : पद में यह शब्द श्लिष्ट है। शाही : पाण्डु० : फो० : ५७ बी०, तारीख: आशा का एक अर्थ दिशा है। सूर्य दिशा को प्रकाशित आजम पाण्डु० : ४० ।