Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 359
________________ १ : ७ : २४८-२५२] श्रीवरकृता २४३ कुपितो वा प्रसन्नो वा कुतोऽप्यागत्य तात मे । दर्शनं देहि नो सोढुं क्षमो विरहवैशसम् ।। २४८ ॥ २४८. 'हे तात् ! कुपित अथवा प्रसन्न होकर, कहीं से आकर दर्शन दो, विरह पीड़ा सहने में समर्थ नहीं हूँ। विहाय क नु मां तात गतः पादैकसेवकम् । धु तिं न लभते पद्मकोरको भास्करं विना ॥ २४९ ।। २४९ 'हे तात! पाद मात्र के सेवक' मुझे त्याग कर, कहा गये? सूर्य के बिना कमल कोरक (कलो) कान्ति नही प्राप्त करता।' किं रुष्टोऽसि महीपतेत्वमधुना दासोऽस्मि सेवापरो मौनं मा भज देहि वाक्यमधुनाप्येकं ममात्यादरात् । नो जीवामि विना त्वयेति विलपन् कुर्वन् भुजारात्रिकां साक्रन्दं रुदितं चकार सुचिरं दृष्ट्वा मुखं भूपतेः ।। २५० ।। २५०. राजा के मुख को देखकर, 'हे महोपति ! क्यो रुष्ट हो? मै इस समय भी सेवापरायण दास हूँ। मौन मत हो, अब भी मुझे प्रेम से एक बात कहो-'तुम्हारे बिना नहीं जीवित रहूँगा' इस प्रकार बिलखते हुए बहुत देर तक चिल्लाकर, रुदन किया। इति प्रलापमुखरं हाज्यखानं शुचादितम् । राजधानी ततो निन्युदिनान्ते मन्त्रिणो बलात् ।। २५१ ।। २५१. शोक-पीड़ित बिलाप करते हाजी खान को सायंकाल' मन्त्री बलात् वहाँ से राजधानी ले गये। पितुर्लोकान्तरस्थस्य प्रीत्यर्थं तत्क्षण सुतः । सालोरग्राममात्मीयं न्यधात तत्र शवाजिरे ॥ २५२ ।। २५२. परलोक स्थित पिता को प्रीति हेतु, तत्क्षण पुत्र ( हाजी खान ) ने उस शवाजिर ( कब्रिस्तान ) में ही अपना सालोर' ग्राम उनमें अनेक सुल्तान तथा राजवंशीय पुरुष चिर पाद-टिप्पणी : निद्रा ले रहे थे। वही उनका बगीचा था। उपमा २५१ (१) सायकाल · प्रतीत होता है कि श्रीवर ने यहाँ अच्छी दिया है। मैन यह स्थान सुल्तान को मध्यान्तर मिट्टी दी गयी थी और देखा है । यहाँ अब भी कुछ वृक्ष लगे है । मुसलमान मृतक सस्कार सायकाल तक समाप्त हो चुके थे। कब्रिस्तान तथा आस-पास वृक्ष लगा देते है। पूर्वीय उत्तर प्रदेश मे कब्रिस्तान मे बैर या मौसरी का पेड़ पाद-टिप्पणी : प्रायः लगाया जाता है। अमीर लोग बाग लगवाते २५२. (१) सालोर : का पाठ भेद 'मालोर' है। उसी मे कबें बनायी जाती है। भी मिलता है। यदि मालोर मान लिया जाय तो

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