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१:७ : २२९-२३३ ] श्रीवरकृता
२३९ यत्र सुप्ता इवैकत्र भान्ति पूर्वे महीभुजः ।
भर्तृप्रेम्णा धरण्येव निहिता हृदयान्तरे ॥ २२९ ॥ २२९. जहाँ पर, पूर्ववर्ती राजा शुप्त सदृश, एकत्र शोभित हो रहे थे, स्वामिप्रेम के कारण धरणी ही, मानों हृदयान्तर में ( उन्हें ) निहत कर लिया है।
रुदत्पौरजनप्रोद्यत्ताररोदननिःस्वनैः ।
बभूवुस्तच्छचेवारं साक्रन्दमुखरा दिशः ॥ २३० ॥ २३०. रोते पुरवासियों के कारण उत्पन्न, तीव्र रोदन के ध्वनि से, मानों अत्यधिक शोक के कारण, दिशाएं हो आक्रन्दन से मुखरित हो उठी ।
क प्रयासि प्रजासत्यक्त्वा हा देव नरजीवित ।
इत्यस्मादपरः शब्दो नाश्रावि नगरान्तरे ।। २३१ ।। २३१. 'हा ! हे ! देव !! हे | नरप्राण !! प्रजाओं को त्यागकर कहाँ जा रहे हो' ? इसके अतिरिक्त नगर में दूसरा शब्द सुनायी नहीं दिया।
तत्तदाक्रन्दितः शश्वत्कर्णसंजातसंस्तवाः ।
शून्येऽप्यशृण्वंल्लोकानामाक्रन्दितमथासकृत् ॥ २३२ ॥ २३२. तत् तत् आक्रन्दनों से, लोगों का कान पूर्ण हो जाने के कारण, शून्य में भी वे लोगों का अनेकशः आक्रन्दन सुनते थे।
कर्णीरथादथोत्क्षिप्य पितुः पार्वे नरेश्वरम् ।
कृत्वा पटैकसंवीतं भूगर्भाभ्यन्तरे न्यधुः ॥ २३३ ॥ २३३. नरेश्वर को कीरथ से उठाकर तथा एक वस्त्र' से परिवेष्ठित कर, पिता के पास भू-गर्भ में रख दिया।
गया था (जैन० : २ . २०८)। हिन्दुओं का शव पाद-टिप्पणी : भी शिविका में ले जाने का उल्लेख श्रीवर ने किया २३३. (१) एक वस्त्र : साधारणतया शव को है (जैन : १ : ५ : ६०)।
स्नान कराने के पश्चात एक तहमत, एक कुरता, दो (२) शवाजिर · काश्मीर के मजारे सलातीन, चादर और एक सरबन्द से शव को आच्छादित कर अर्थात् कब्रिस्तान से तात्पर्य है । द्र०:२ . ८५, देते है । अरब मे तीन चादर मे लपेटते है । काश्मीर ८९; ३ : ३५५ ।
की यह लौकिक परम्परा प्रतीत होती है कि शव को पाद-टिप्पणी :
मिट्टी देने के पूर्व एक वस्त्र से परिवेष्ठित करते है । 'प्रेम्णा' पाठ-बम्बई।
मुहम्मद साहब दो महीन वस्त्रों में परिवेष्ठित किये
गये थे। तीसरा धारीदार वस्त्र शव पर डाल पाद-टिप्पणी :
दिया गया। २३०. 'तार' पाठ-बम्बई ।
हैदरशाह के मृत्यु के पश्चात उसके मिट्टी दिये