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जेनराजतरंगिणी
दर्शितास्वास्थ्यवान्बन्धस्त्यक्तपेयाद्य, पक्रमः 1 नृपेन्द्रो विरुचिः क्षीणकलचन्द्र इवाभवत् ।। २१६ ।।
२१६. अस्वस्थता के कारण मौनालम्बन प्रदर्शित करके तथा पेयादि का उपक्रम त्याग कर, राजा क्षीण कलावाले चन्द्रमा के समान रुचि ' ( कान्ति ) हीन हो गया । प्रजाभाग्यविपर्यासात् सर्वायासाय विच्छविः ।
कल्पान्तरविवत्सोऽस्तं गन्तुं प्रावर्ततातुरः ।। २१७ ॥
[ १ : ७ : २१६ - २१८
२२७. प्रजा भाग्य विपर्यय' के कारण, सब लोगो को कष्ट देने के लिये, छविहीन होकर, आतुर राजा कल्पान्तर के सूर्य सदृश अस्त होने लगा ।
पाद-टिप्पणी :
कंपितौष्ठपुटज्ञातमन्त्रपाठः
कवेदिने ।
द्वादश्यां ज्येष्ठमासस्य मध्याह्ने जीवितं जहौ ।। २१८ ।।
२१८. कम्पित ओष्टपुट से जिसका मन्त्रपाठ' ज्ञात हो रहा था, वह ज्येष्ठ मास के द्वादशी तिथि शुक्रवार के दिन मध्याह्न मे प्राण त्याग किया।
'कलचन्द्र' पाठम्बई ।
२१६. (१) रुचिहीन श्रीवर राजा की मृत्यु आसन्न है इसके लक्षणों का अगले श्लोको मे वर्णन करता है । कान्तिहीन एव किसी बात मे रुवि किंवा वैराग्य भाव आसन्न मृत्यु के लक्षण है । वायु, मारकण्डेय आदि पुराणो मे मृत्यु के सकेत की लम्बी तालिका मिलती है (वायु० १९ १-१२; मार्कण्डेय० : ४३. १-३३) वायुपुराण के अनुसार यदि कानो के छिद्र उँगलियो से बन्द कर लिए जायें और किसी प्रकार की आवाज न सुनायी पडे या नेत्रों में प्रकाश न दिखायी पड़े तो आसन्न मृत्यु समझना चाहिए। शान्तिपर्व के अनुसार, अरुन्धती, ध्रुवतारा, पूर्णचन्द्र एवं दूसरों की आँखों में अपनी छाया दृष्टिगोचर न हो तो उनका जीवनकाल एक वर्ष माना गया है । चन्द्रमण्डल मे जिन्हे छिद्र दिखाई पड़ता है, उनका जीवनकाल ६ मास होता है । सूर्यमण्डल में छिद्र तथा समीप की सुगन्धित वस्तुओं में शव की गन्ध जिन्हे मिलती हैं, उनका जीवन केवल ७ दिन होता है । आसन्न मृत्यु का लक्षण
कान एवं नाक का झुक जाना, नेत्र एव दाँतो का रंग बदल जाना, संशाशून्यता, शरीरोष्णता का अभाव, कपाल से धूम निकलना आदि है। यदि स्वप्न मे गधा देखे तो उसका मरण निश्चय समझना चाहिए । यदि स्वप्न मे वृद्ध कुमारी स्त्री को देखा जाय तो उसे भय, रोग, मृत्यु का लक्षण मानना चाहिए। त्रिशूल देखने पर मृत्यु परिलक्षित होती है । पाद-टिप्पणी
२१७ (१) प्रजा भाग्य विपर्यय: प्रष्टव्य टिप्पणी १ : ३ : १०५ । पाद-टिप्पणी
२१८. (१) मन्त्रपाठ परशियन इतिहासकारों का मत है कि सुल्तान कलमा पढ़ रहा था मृत्यु के समय प्रथा है कि मुल्ला अथवा घर के लोग व्यक्ति के समीप बैठकर कलमा पढ़ते है। बेहोश होने पर जोर से कान में कलमा कहते और पढ़ने के लिये कहते हैं । मृत्यु मुख व्यक्ति कलमा पढने का प्रयास करता है । उसके ओठ हिलते दिखायी पड़ते है । इस समय मृत्यु मुख व्यक्ति को चित्त लिटा देते है। शिंर उत्तर तथा पद दक्षिण रहता है ।