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१:५ : २६-३० ]
श्रीवरकृता
धान्य कूटच्छलान्नूनं साभूद् धात्र्याः कुचस्थली |
प्राप्तोपया प्रजा यस्माद् वृद्धिमापद् दिने दिने ।। २६ ।।
२६ धान्य के ढेर के व्याज से, वह निश्चय हो, धात्री की कुचस्थली हो गयी थी, जिससे तृप्त होकर, प्रजा प्रतिदिन वृद्धि प्राप्त कर रही थी ।
दुर्लभोपद्रवानिष्टा यत्र
यत्राभवत् क्षितिः ।
स सुय्य इव सस्याढ्यां तत्र तत्राकरोन्नृपः ॥ २७ ॥
२७. जहाँ-जहाँ, भूमि दुर्लभ उपद्रव ग्रस्त होती, वहाँ-वहाँ, सुय्य' की तरह इस राजा ने सस्य सम्पत्ति पूर्ण किया ।
न तत् स्थलं न कन्तारो न स देशो न साटवी । यत्र नानीय कुल्याः स्वाः स्वनामाङ्काः पुरीर्व्यधात् ॥
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२८ ॥
२८. वह स्थल नहीं, वह कन्तार (बन) नहीं, वह देश नहीं, वह अटवी नहीं, जहाँ इसने कुल्या' लाकर, अपने नाम की पुरी न बनायी हो ?
नसा नदी न तत् क्षेत्रं न स ग्रामो न सा पुरी ।
न तत् स्थानं न यद् राज्ञा जैननामाङ्कितं कृतम् ।। २९ ।।
२९. वह नदी नहीं, वह क्षेत्र नहीं, वह ग्राम नहीं, वह पुरी नही और वह स्थान नहीं, जिसे राजा ने जैन नामाकित नहीं किया ।
यत्र यत्राभवन्निम्नः
प्रदेशस्त कुल्यया । व्यधाद् राजा सरः पक्षिविसशृङ्गाटभूषितम् ॥ ३० ॥
३०. जहाँ-जहाँ पर निम्न प्रदेश था, वहाँ कुल्या द्वारा पक्षी तथा कमल, शृगांट, विभूषित सरोवर बनाया ।
पाद-टिप्पणी :
२६. (१) कुचस्थली : जिस प्रकार स्त्री के समतल छाती पर कुच उठे ढेर की तरह लगते हैं, उसी प्रकार धानों के लगे ढेर से समतल खेत उठी स्थली तुल्य लगते थे । पाद-टिप्पणी :
२७. (१) सुय्य: अवन्तिवर्मा का मंत्री । अपने समय का चतुर अभियन्ता था। इसने वितस्ता का जल प्रवाह बदल दिया था। उसकी योजना से काश्मीर की रक्षा जलप्लावनों से हो गयी थी (रा० जै. रा. १९
क० ५ : ७२, ९८, १०९, ११८; ६ : १३३ ) । पाद-टिप्पणी :
२८. (१) कुल्या = छोटी नहर : कुल्याम्भोभिः पवन चपले. शाखिना धौत मूला (श० १ १५) । श्रीवर ने यहाँ अनोखी उपमा प्रस्तुत की है । पाद-टिप्पणी
पाठ-बम्बई ।
३०. कलकत्ता संस्करण की ४१६वीं पंक्ति तथा बम्बई का ३०वाँ श्लोक है ।