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७:४५-४७ ]
श्रीवरकृता मानुष्यकं नववसन्तमिवाप्य हृद्य
लोका लता इव लसन्ति नवे वनेऽस्मिन् । तद्वान्धवा रुचिकरा इव पुष्पपूगाः
स्थित्वा दिनानि कतिचिच्चतुरं प्रयान्ति ॥ ४५ ॥ ४५ नूतन वसन्त के सदृश मनोहारी, मनुषत्व को प्राप्त कर, नगर में नवीन वन में लता के समान लोग शोभित होते है और मनोरम पूष्प-पुञ्ज सदृश, उसके बन्धुगण, चार दिनों तक रहकर चले जाते हैं।
विहगेष्विव जातपक्षपूगः
पुरुषेषु प्रभवेत् कुटुम्बवर्गः । सुखगत्युचितोऽपि तत्प्रतिष्ठो
न चिरं तिष्ठति कायकष्टदायी ॥ ४६॥ ४६ उत्पन्न पक्ष-पुञ्ज युक्त पक्षी, अन्य पक्षियों के प्रति जिस प्रकार व्यवहार करता है, उसी प्रकार पक्ष आदि से पूर्ण कुटुम्ब वर्ग भी मनुष्यों के प्रति वह पक्षी-सा कुटुम्ब वर्ग सुखपूर्वक गति के योग्य होने पर उठा-सा मनुष्यों के आश्रित होकर, शरीर को कष्ट देनेवाला बनकर, चिरकाल तक उनके आधीन नहीं रहता।
अत्रान्तरे दिवं याता सा बोधाखातोनाभिधा ।
श्रीमत्सैदान्वयोदन्वच्चन्द्रिका नृपतिप्रिया ।। ४७ ॥ ४७. इसी बीच, वह बोधा खातून' नामकी नृपति-प्रिया, स्वर्ग चली गयी, जो कि श्रीमान् सैय्यिद वंश रूप समुद्र की चन्द्रिका थी।
पाद-टिप्पणी:
(२) सैय्यिद वंश : सैय्यद मुहम्मद वैहकी ४७. ( १ ) बोधा खातून : जैनुल आबदीन के ।
का वंश । बहारिस्तान शाही (२९ बी०, ३० बी०) व्यक्तिगत कौटुम्बिक जीवन के सन्दर्भ मे बहुत कम
के अनुसार बोध खातून की दो लडकियाँ थी। एक जोनराज तथा श्रीवर ने वर्णन किया है। सैय्यिद
का व्याह सैय्यद हसन वैहकी तथा दूसरे का पखली
के शासक के साथ हुआ था। मुहम्मद वैहकी की कन्या थी। नाम ताज खातून था। श्री मोहिबुल हसन का मत है कि श्रीवर वर्णित सैय्यद लोग कालान्तर में कृषक कार्य करने लगे बोध खातून ही ताज खातून है। उन्होंने बोधा को थे। तथापि गाँवों में आदर की दष्टि से देखे जाते मखदूम का अपभ्रश मानने का अनुमान किया है। थे। बोध खातून को कुछ काश्मीरी लेखक बैहकी अथवा वह 'वोड' का अपभ्रंश है। जिसका अर्थ बेगम मानते है । उसके कब्र पर जो मजारए बहाउबड़ा होता है । सुल्तान का पुकारने का नाम बड़- हीन श्रीनगर मे है : नाम मखदूमा खातून लिखा है। शाह हो गया था, इसी प्रकार बडी रानी होने के वफात-ए-हजरत मखदूम : खातून, कारण उसे भी 'वोड' कहा जाने लगा।
कि सल हश्त सद ओ हफ्तद विगूजस्त ।