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जैन राजतरंगिणी
लब्धेमुष्मिन् भवति हि सुखं सर्वदैवेति बुद्धया यः संहर्तुं रिपुकृतभियो रक्षणीयोऽवभाति । तत् तन्त्रस्थो यदि भवति स स्वात्मरक्षास्वशक्तो भण्डादिव तुरतः प्रत्युतोपद्रवः स्यात् ।। १६४ ॥
१६४. इसके प्राप्त होने पर निश्चय ही सदैव सुख होगा, इस बुद्धि से शत्रुकृत भय दूर करने के लिये जो रक्षणोय प्रतोत हो रहा है, अपनी रक्षा में आसक्त वह यदि तन्त्रस्थ ( शासनारूढ) होता है, तो उसी प्रकार उपद्रव उठ खड़ा होगा, जैसे भाण्ड द्वारा त्रस्त अश्वसे । पित्रास्मदर्थमानीतो ज्येष्ठो द्विष्टो भयाय नौ । इति क्रुद्धौ सुतौ श्रुत्वा चकितः स नृपोऽभवत् ।। १६५. 'पिता द्वारा लाया गया, द्वेषी ज्येष्ठ (पुत्र) हम दोनों के कारण दोनों पुत्रों को क्रुद्ध हुआ सुनकर, राजा चकित हो गया ।
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कर लेने
[ १ : ७ : १६४-१६९
राजा च राजपुत्राश्च तदमात्यपुरोगमाः । अन्योन्याशङ्किताः सर्वे न निद्रामुपलेभिरे ॥ १६६ ॥
१६६. राजा और उसके मन्त्रियों द्वारा अग्रसारित, सब राजपुत्र परस्पर आशंकित होकर, निद्रा नहीं प्राप्त किये ।
भोगोपचारं संत्यज्य तत्कालं तेषु सेवकाः ।
यत्तज्जिह्वोपकारेणारञ्जयन् स्वामिनो निजान् ॥ १६७ ॥
१६७. उस समय सेवक उनके ( राजा-राजपुत्रों ) प्रति भोगोपचार त्याग कर, केवल जिह्वोअपने स्वामी का रजन कर रहे थे ।
पकार द्वारा,
१६५ ॥
भय के लिये है' – इसके
कर्तव्यमादिशत् किंचिद्यत् स भृत्यान् क्षणान्तरे ।
अवोचत् कृतकर्तव्यान् किमुक्तं न स्मराम्यहम् || १६८ ॥
१६८. वह जो कुछ करने के लिये भृत्यों को आदेश देता, (पुनः) क्षणभर पश्चात कार्य उनसे कहता- 'मैंने क्या कहा स्मरण नहीं' ।
पर,
आदम खाँ को काश्मीर बुलाया। आदम खां राजधानी मे पहुँचा । सुल्तान के यहाँ गया परन्तु सुल्तान ने उसे क्षमा करना अस्वीकार कर दिया ( ४७३ ) । द्र० : १ : ३ : ८२-८५; १ : ७ :
स्वहस्ताक्षरसम्पन्नां त्यक्त्वा रीतिं पुरातनीम् ।
ज्ञात्वा प्रकृतिवैगुण्यं चक्रे तन्त्रं स मन्त्रिसात् ॥ १६९॥
१६९. उसने अपने हस्ताक्षर' से सम्पन्न प्राचीन रीति त्याग कर और प्रकृति वैगुण्य (अपने दोष) को जानकर, शासन को मन्त्रियों के हाथ कर दिया ।
१९७; ३ : १९२; ४ : १४५ । पाद-टिप्पणी :
'सदनेक्षिप्त:' पाठ - बम्बई ।
१६९. ( १ ) हस्ताक्षर : सुल्तान राज्यादेशों