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१ : ७ : ११०-११३ ]
श्रीवरकृता
स्ववीर्येणार्जितं राज्यं योजितं स्वधिया मया । कुपुत्रैर्नाशितं सर्वं परस्परविरोधिभिः ।। ११० ।।
११० 'मैने अपने वीर्य से राज्य को अर्जित किया, अपनी बुद्धि से योजित किया, परस्पर विरोधी पुत्रों ने सर्वनाश कर दिया ।
सप्ताङ्ग धातुसंबद्धं राज्यं देहमिवोर्जितम् ।
दोषैरिवैतैः पुत्रैर्मे त्रिभिः संदूषतं नु यत् ॥ १११ ॥
१११. 'क्योकि सप्तधातु' सम्बद्ध देह सदृश, संप्तांग अर्जित, राज को त्रिदोषों के समान, मेरे इन तोनों पुत्रों ने सन्दूषित कर दिया है ।
पाद-टिप्पणी :
तत्स्वास्थ्यमासादयितुं शक्ताः पथ्यचिकित्सया ।
मन्मन्त्रिणोऽगदंकारा न सन्त्यद्यतने क्षणे ॥। ११२ ।।
११२. 'पथ्य' चिकित्सा द्वारा उसे स्वस्थ कराने में मेरे मन्त्री रूप वैद्य, इस समय समर्थ
नहीं हैं।
भुक्ता भोगाश्चिरं शास्त्रगीतकाव्यविनोदनैः ।
वयः सफलतां नीतं कार्यं किमपि नास्ति मे ॥ ११३ ॥
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११३. 'शास्त्र', गीत, काव्य, के विनोदपूर्वक चिरकाल तक भोगो का भोग किया, आयु सफल कर लिया, मुझे अब कुछ कार्य नहीं है ।
१११. ( १ ) सप्त धातु द्रष्टव्य : १ ७
६६ ।
(२) सप्तांग राज्य के सात अंग -- १. स्वामी (राजा), २. अमात्य, ३. जनपद, ( राष्ट्र - भूमि-प्रजा), ४. दुर्ग, ५. कोश, ६ दण्ड (सेना), ७. मित्र ।
कौटिल्य के अनुसार सप्तांग ही राज्य की प्रकृतियाँ है -- स्वाम्यमात्य जनपद दुर्ग कोश दण्ड मित्राणि प्रकृतय: ( ६ : १) । द्रष्टव्य याज्ञवल्क्य : १ : ३५३; मनु० : ९ : २९४ विष्णुधर्मसूत्र ० : ३३३; शान्तिपर्व : ६९ : ६४-६५ मत्स्यपुराण : २२५ : ११, २३९; अग्निपुराण : २३३ : १२; कामन्दक ० १ : १६; ४ : १-२ ।
(२) त्रिदोष : वात, पित्त एवं कफ़ का एक साथ प्रकुपित हो जाना त्रिदोष माना गया है । इन तीनों के प्रकोप से सन्निपात जैसी प्राणघातक व्याधि
उत्पन्न हो जाती है ।
पाद-टिप्पणी
११२. ( १ ) पथ्य : चिकित्सा का एक अंग है । रोग में खान-पान पर नियन्त्रण एवं चिकित्सा शास्त्रानुसार खान-पान के प्रयोग से तात्पर्य है । रोगी के लिए हितकर वस्तु किंवा आहार है । औषधि से कोई लाभ नही होता यदि रोगी कुपथ्य करता है -- करिके पथ्य विरोध इक रोगी त्यागत प्रान । ( भा० हरिश्चन्द्र )
स्वास्थ्यप्रद
स्वास्थ्य वर्धक, कल्याणकारी आहार, किंवा रोगी के अनुकूल खान-पान से तात्पर्य है । उन पदार्थों के समूह से अर्थ हैं, जो किसी रोग में स्वास्थ्य वर्धक या हानिकर माने जाते है । पाद-टिप्पणी :
११३. ( १ ) शास्त्र : यहाँ शास्त्र से अर्थ