Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 335
________________ १:७:१४८-१५४] श्रीवरकृता २१९ राज्ञो धात्रेयपुत्राद्याः प्रमेयैरपि सत्कृताः । भूपपक्षं परित्यज्य हाज्यखानमुपागमन् ॥ १४८ ।। १४८. राजा ने धात्री-पुत्रादि तथा विश्वस्त जन, राजा का पक्ष त्याग कर, हाज्यिखान के पास चले गये। किमन्यद् व्यक्तमेवादि ये दृष्टा नृपसन्निधौ । अलक्ष्यन्त निशि स्वैरं ते खानाग्रे गतत्रपाः ॥ १४९ ।। १४९. अधिक क्या कहा जाय, दिन में जो लोग सुस्पष्ट रूप से राजा के समीप देखे गये, वे निर्लज्ज स्वेच्छापूर्वक रात्रि में खान के समक्ष दिखायी दिये। ताटस्थ्येन स्थिते राज्ञि तभृत्यानां परस्परम् । तत्तदाक्षेपतो देशे कोऽप्यजृम्भत विप्लवः ।। १५० ॥ १५० तटस्थतापूर्वक राजा के स्थित रहने पर, उसके भृत्यों के परस्पर तत्-तत् आक्षेप करने के कारण, देश में कोई विचित्र विप्लव खड़ा हो गया। भविष्यन्निव साम्राज्यस्यार्धभागी न कस्तदा। तत्पुढेष्वनुरक्तोऽभून्न तु राजिसुखस्थिते ॥ १५१ ॥ १५१. उस समय अर्ध साम्राज्य के भागीय होने के सदृश, कौन उसके पुत्रों में अनुरक्त तथा कौन सुखस्थ राजा से विरक्त नही हुआ ? इत्थं स्वभृत्यसंचारदुराचारविचारणात् । परिवारान्निजात् सर्वान्निर्विण्णोऽभून्महीपतिः ।। १५२ ॥ १५२. इस प्रकार राजा अपने भृत्यों के संचार समस्त दुराचार को विचार कर, अपने परिवार से खिन्न हो गया। अद्य ये स्वान्तिके दृष्टाः प्रातः खानान्तिके श्रुताः। दाढयं कुत्रापि नो प्रापुः सारसा इव सेवकाः ॥ १५३ ॥ १५३. आज जो अपने पास दिखायी दिये, प्रायः खान के समीप सुने गये, इस प्रकार सारस सदृश सेवक, कहीं भी स्थिर नहीं हुये। हृद्दो वर्ण्यते यस्मै तादृगाश्वासभाजनम् । तत्कालं सेवको भक्तो दृष्टः कोऽपि न भूभुजा ॥ १५४ ॥ १५४. हृदय रोग का जिससे वर्णन किया जाता, ऐसा आश्वासन देनेवाला, कोई भक्त सेवक, उस समय राजा को नहीं दिखायी दिया।

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