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१:७ : १२९-१३३ ]
श्रीवरकृता राजवेश्मनि पयोनिधौ च या
वाहिनीभृति पदार्थपूर्णता। जीवनाप्तजनयाचकाचिता
सैव तस्य सुषमा समाहिता ॥ १२९ ॥ १२९. वाहिनी (सेना) या नदियों से पूर्ण राज्य गृह एवं समुद्र में पदार्थो की जो पूर्णता होती है, याचकजन आकर, अपने जीवन के लिये, जिसकी याचना करते है, वही उसकी सुस्थिर शोभा है।
यद्यदुक्तं नरेन्द्रेण स्मृत्वा तत्तत् फलेक्षणात् ।
न कः शंसति शोकार्तस्तदीयां दीर्घदर्शिताम् ॥ १३० ॥ १३०. राजा ने जो जो कहा, फल देखने से, उसका उसका स्मरण करके, कौन शोकार्थ होकर, उसके दीर्घदर्शिता की प्रशंसा नहीं की ?
सचिवाः सेवकाः पुत्रमित्रसंबन्धिबान्धवाः ।
दुःखापनोदं कुर्वाणाः केपि नासन् महीभुजे ॥ १३१ ।। १३१. सचिव, सेवक, पुत्र, मित्र, संबन्धी, बान्धवगण, कौन-से लोग राजा का दुःख दूर करने का उपाय नहीं कर रहे थे ?
राजा गर्भगृहान्तःस्थः शृण्वन् पुत्रस्थिति मिथः ।
कृतकप्रेमवैराढ्यां न बहिर्निरयाद्भिया ॥ १३२ ।। १३२. राजा गर्भगृह (केन्द्रीय गृह) में स्थिर रहकर, कृत्रिम प्रेम से एवं वैर सबृद्ध युक्त पुत्र की स्थिति सुनते हुए, भय से बाहर नही निकलता था।
संसारदुःखशान्त्यर्थं मत्तो व्याख्यानवेदिनः।
अशृणोद् गणरात्रं स श्रीमोक्षोपायसंहिताम् ॥ १३३ ॥ १३३. व्याख्यानवेत्ता मुझ' (श्रीवर) से, संसार दुःख की शान्ति के लिये, अनेक रात्रियों में, श्री मोक्षोपाय संहिता सुनी। पाद-टिप्पणी :
है। राजा को वह योगवाशिष्ठ रामायण सुनाता १३२. (१) गर्भगृह : अन्तःपुर। घर के था, इसका उल्लेख उसने १ : ५ : ८०, गीतगोविन्द भीतर का कमरा या घर का मध्य भाग। मन्दिर सुनाने एवं गाने का उल्लेख १: ५ : १०० तथा का वह कक्ष जिसमे देव प्रतिमा रहती है। मोक्षोपम उपाय सुनाने का उल्लेख १:७: १३९ पाद-टिप्पणी:
में करता है। १३३. (१) मुझ : श्रीवर स्थान-स्थान पर (२) मोक्षोपाय संहिता : विभिन्न दर्शन सुल्तान से अपने सन्निकट होने का उल्लेख कैरता सम्बन्धी ग्रन्थों से यहाँ तात्पर्य है। जिनमें मोक्ष