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१:७: ७९-८४] श्रीवरकृता
२०५ अनुजागमनत्रासाद् यथा यातोऽग्रजः पुरा ।
तथाग्रजागमत्रासादनुजो याति देशतः ॥ ७९ ॥ ७९. पहले जिस प्रकार अनुज के आगमन त्रास से, अग्रज चला गया था, उसी प्रकार अग्रज के आगमन त्रास से, अनुज भी देश से जा रहा है।
एतत्कलहनिश्चिन्तः प्राग्वत् स्यां निजमण्डले ।
इति दुद्धया प्रवेशेऽस्य कृतोपेक्षो नपोऽभवत् ।। ८० ।। ८०. 'इसके कलह से निश्चित पूर्ववत् निज मण्डल में रहूँगा', इस विचार से राजा उसके प्रवेश के प्रति उदासीन रहा।
हाज्यखानात्मजः श्रुत्वा तं पितृव्यं समागतम् ।
युयुत्सुः प्राप पर्णोत्सं त्यक्त्वा राजपुरी ततः ।। ८१ ।। ८१. हाज्यि खांन का पुत्र अपने उस (चाचा) पितृव्य (आदम खां) को आया हुआ सुनकर, युद्ध की इच्छा से, राजपुरी त्यागकर, पर्णोत्स पहुंचा।
आन्द्रोटकोटमाश्रित्य भ्रातपुत्र पितृव्ययोः ।
कश्मीरागमनद्वेषादभवद् युद्धमुद्धतम् ।। ८२ ॥ ८२. काश्मीर आगमन के द्वेष के कारण आन्द्रोट' कोट का आश्रय लेकर, चचा-भतीजा में प्रचण्ड युद्ध हुआ।
दृष्टं हसनखानस्य क्षमित्वं बलशालिनः ।
विना पैतामहीमाज्ञां नागाद् देशोत्सुकोऽपि सन् ।। ८३ ॥ ८३. बलशाली हसन खान' की क्षमता देखी गयी, जो कि देश के प्रति उत्सुक होने पर, बिना पितामह की आज्ञा के नहीं गया।
अग्रजेऽभ्यन्तरं प्राप्ते द्वारस्थे लक्षिते पितुः।
हाज्यखानोऽनुजयुतो युक्त्या साम प्रयुक्तवान् ॥ ८४ ॥ ८४. भीतर पहुंचे, एवं द्वार पर स्थित, अग्रज को पिता के द्वारा देखे जाने पर, अग्रज सहित हाजी खां ने युक्तिपूर्वक साम्य नीति' का प्रयोग किया ।
पाट-टिप्पणी :
यहीं उल्लेख मिलता है। पाठ-बम्बई।
पाद-टिप्पणी: ८२. (१) आन्द्रोट कोट : मेरा अनुमान है कि ८३. (१) हसन खा : हाजी खाँ का पुत्र । वह स्थान अन्दरकोट है पूर्व राजतरगिणीकारों ने शाहमीर वंश का दशवाँ सुल्तान था। इसका नाम इसकी संज्ञा अभ्यन्तर कोट दिया है। उसी का राज्य प्राप्त करने पर हसनशाह पड़ गया था। अपभ्रंश अन्दरकोट है। सम्भव है श्रीवर के समय पाद-टिप्पणी : आद्रोट इसकी लौकिक संज्ञा हो गयी होगी। अनु- पद का चतुर्थ चरण सन्दिग्ध है। सन्धान अपेक्षित है। इस रूप में नाम का केवल ८४. (१) साम्यनीति : द्रष्टव्य टिप्पणी :