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श्रीवरकृता
क्रमराज्यस्फुरत्प्राज्यराज्यतन्त्र क्रियाङ्कितम्
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भूर्ज भाण्डादि तत्रस्थं समस्तं भस्मसादभूत् ।। ३५ ।।
३५. क्रमराज्य (कमराज) के बहुत से राजतन्त्र की कृया (लेख) से युक्त भूर्ज (पत्र) भाण्डादि, जो कि वहाँ थे, वह समस्त भस्मसात हो गया ।
ग्राह्यो जैनगिरिक्षेत्रे सप्तमांशोऽत्र भाविभिः ।
१:७ : ३५-३८ ]
इति ताम्रमये पट्टे कल्पं यस्यां व्यधान्नृपः ।। ३६ ।।
३६. इस जैनगिरि क्षेत्र में भावी (नृप ) सप्तमांश ग्रहण करे, यह राजा ने ताम्रपट्ट पर, इस प्रकार आदेश लिखाया
श्रीमाञ्
कृष्टोत्पाट्य
जैनोल्लाभदीनो
ययाचे
स्वन् भूपान् भाविनो जैनगिर्याम् । स्वैर्धर्मयात्र
तस्या ग्राह्यः सप्तमांशो भवद्भिः ।। ३७ ।।
३७ 'श्रीमान् जैनुल आबदीन भावी नृपो से याचना करते हैं कि जैनगिर पर मैंने धन से भूमि को सम्पन्न बनाकर, कृषि पूर्ण कर दिया है । आपलोग उसका सातवाँ' अंश ग्रहण करे । जलावतरणं कृत्वा गिरीमुल्लङ्घय सेतुवेर्धनीयः
मस्कृतः ।
पुण्यकेतुर
शुभेच्छया ।। ३८ ।।
३८ ' जलावतरण करके तथा पर्वतों को लाँघकर, मेरे द्वारा निर्मित, पुण्य केतु' भूत, यह सेतु शुभकामना से संवर्धित करना ।'
कारण वितस्ता सिन्धु संगम नवीन स्थान गया था। उसने सुय्यमेव एवं सुय्यपर का कराया था । स्वयं का अर्थ यहाँ सुय्य है ।
पर बन निर्माण
(२) सुय्यपुर: सुय्य द्वारा स्थापित नगर सोपोर । द्र० : १: ३ : ९१, १०८ १ : ७ : ४३, २०७; ३ : ४३, १८१; ४ : ५६० । पाद-टिप्पणी :
३६. ( १ ) जैनगिर : इस नगर की स्थापना सोपोर के समीप हुई थी ( जोन० : ८१२ ) । यह कमराज का परगना है । यह क्षेत्र सोपुर के उत्तरपश्चिम तथा पोहुर नदी और ऊलर लेक के मध्य है । यव इस परगना की मुख्य उपज है । शुहा के समीप पहाडी के पादमूल में धान की खेती होती है ।
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( २ ) ताम्रपत्र तवक्काते० : ३ : ४३६; फिरिश्ता० ३४२ । पाद-टिप्पणी :
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३७. ( १ ) सातवाँ उल्लेख है — कुछ स्थानों पर और कुछ स्थानों पर सात गया ( ४४३ = ६६५ ) ।
पाद-टिप्पणी
तवक्काते अकबरी मे खराज चार मे से एक में से एक निश्चय किया
खराज एक प्रकार का लगान या भूमिकर है । यह एक प्रकार का कर है, जो अधीनस्थ राजा अपने से बड़े राजा को देता है । चौथ के अर्थ में भी प्रयोग होता है ।
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३८. ( १ ) केतु : यहाँ केतु का अर्थ ग्रह