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जैन राजतरंगिणी
यत्संयोगसुखं प्राप्य सोऽज्ञासीत् सफलं वयः । द्वियोगाद्विदग्धाङ्गः सर्वं शून्यमिवाविदत् ॥ ४८ ॥
४८. जिसका संयोग सुख प्राप्तकर, वय को सफल जाना था, उसके वियोग से, वह दग्धांगसा होकर, सब कुछ शून्य सदृश जाना ।
न्यस्तो राजेन्दुना सिन्धुदेशे यो गुणसुन्दरः ।
स्वत्राणेन सुरत्राणप प्राणाधिकप्रियः ।। ४९ ॥
४९. स्वरक्षक (अपने लोगों का रक्षक) नृपति चन्द्र ने जिस गुण, सुन्दर एवं प्रणाधिक प्रिय को सिन्धु देश में सुल्तान के पद पर स्थापित किया था
श्रीक्यामदेनं सिन्ध्वीशं भागिनेयं सुतोपमम् । राहिमनाम्ना तं हतं
[ १ : ७ : ४८–५२
युद्धेऽभृणोन्नृपः ।। ५० ।।
५०. राजा ने उस सुतोपम भगिनी - पुत्र एवं सिन्धु के स्वामी श्री क्यामदेन' को इब्राहीम द्वारा युद्ध में मारा गया सुना ।
परमाश्वासनोपायः सुखे दुःखे च योऽभवत् ।
तदा तन्मरणं राजा
भुजच्छेदमिवाविदत् ॥ ५१ ॥
५१. सुख एवं दुःख मे जो परम आश्वासन का उपाय था, उस समय राजा ने उसका मरना 'भुजच्छेद' (हाथ कट जाना) माना ।
उक्त पद से मृत्यु काल हिजरी ८७० = सन् १४६५ ई० निकलता है। जैनुल आबदीन की मृत्यु के ५ वर्ष पूर्व उसकी मृत्यु हुई थी। संय्यिदों की वैहकी शाखा, वैहक क्षेत्र सब्जवर से सैय्यिद मुहम्मद हमदानी के साथ आयी थी । कालान्तर में सैय्यिद लोग दिल्ली में जाकर आबाद हो गये । मखदूमा खातून उसी वंश के सैय्यद हसन की कन्या थी । ( बहारिस्तान. पाण्डु० : फो० ३७ बी० तथा ४५ बी०; तारीख हसन पाण्डु : २ : ३१० ) । पाद-टिप्पणी :
५०. ( १ ) क्यामदेन : कयामदीन या कायम -
दर्यावखानादि
नवा |
याभून्मन्त्रिसभा लीलामित्रैः समं सर्वा सा ययौ स्मरणीयताम् ।। ५२ ॥
५२. दर्याव खान' आदि के मरने पर जो नवीन मन्त्रि सभा थी, उन सबकी लीला (विनोद) मित्रों के साथ स्मृति मात्र शेष रह गयी ।
दीन या इकरामुद्दीन होना चाहिए। जाम निजामुद्दीन ( जामनन्द ) सिन्ध के गद्दी पर सन् १४६१ ई० में बैठा था । सन् १४७२ ई० मे मोहम्मद बेघरा गुजरात ने सिन्ध पर आक्रमण किया था । किन्तु यह समय जैनुल आबदीन सन् १४२०- १४७० ई० की मृत्यु के पश्चात् का है ।
पाद-टिप्पणी :
५२. (१) दर्यावखान दरया खाँ = दरिया खां । जोनराज ने भी इस व्यक्ति का उल्लेख किया है । द्रष्टव्य जोन० : ९६३ । केवल यहीं उल्लेख मिलता है ।