Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 317
________________ श्रीवरकृता प्राप्ता नैवेदृशी भूयो यदि दुर्व्यसनो भवान् । किं चिरन्तनवृत्तान्तैर्वृष्ण्यादीनां १ : ७ : ६३-६५ ] समीरितैः ॥ ६३ ॥ ६३. यदि आप दुर्व्यसनी रहेंगे तो पुनः यह प्राप्त नहीं होगी । यादवादि' के चिरन्तन वृतान्तों के कहने से क्या लाभ ? मद्येनानुभूपाला दृष्टनष्टा विचार्यताम् । सबलारातिगणतूलसमीरणः ॥ ६४ ॥ तथा ६४. उन बहुत से भूपालों का विचार करो, जिनका मद्य के कारण विनाश हो गया जैसे सबल शत्रु समूह रूप तूल के लिये वायु । मल्लेकजस्रथो योऽभून्मद्राज्याप्तिनिधानभूः । तेनापि दृष्टं दुष्टं प्राङ् नात्याक्षीत् तत् स्ववञ्चकः ।। ६५ ।। २०१ पाद-टिप्पणी : ६३ (१) यादव : महाभारत वर्णित मद्यपान के कारण यादव वंश सहार की ओर सुल्तान ने संकेत किया है । द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : २ : ८. पाद-टिप्पणी : ६५. 'मल्लिक जसरथ' जो कि मेरे राज्य प्राप्ति रूप निधान का भूमि था, उस आत्मवंचक ने भी मद्य के दोष को देखकर, भी नहीं छोड़ा था । ६५ ( १ ) जसरथ : ( सन् १३९९ - १४४६ ई० ) खोखर सरदार था । जोनराज ( श्लोक ७३२ ) तथा श्रीवर ने ( १ : ३ : १०७ ) और आइने अकबरी मे अबुल फजल ने सुल्तान जैनुल आबदीन और जसरथ की मित्रता का उल्लेख किया है। जैनुल आबदीन से विदा होकर जसरथ दिल्ली की ओर बढ़ा परन्तु वह बहलोल लोदी से पराजित हो गया । वह लौटकर काश्मीर आया और सुल्तान की फौज की सहायता से पंजाब जीता ( पृ० ४३९ ) । श्रीवर के वर्णन से प्रकट होता है कि जसरथ का देहावसान जैनुल आबदीन के ही समय हो गया था । श्रीवर का वर्णन ठीक है । जैनुल आबदीन की मृत्यु जसरथ के २२ वर्ष पश्चात् सन् १४७० ई० में हुई थी। तारीख मुबारकशाही में अहयाविन अहमद विन अब्दुल्ला सिरहिन्दी काश्मीर के अलीशाह जै. रा. २६ और जसरथ के संघर्ष का उल्लेख करता है । सिकन्दर पिता जैनुल आबदीन ने सूहभट्ट तथा जसरत खोखर को राजा जम्मू को दबाने के लिए भेजा था। उन लोगों ने जम्मू विजय कर, उसे लूटा था । अलीशाह और जैनुल आबदीन संघर्ष काल में जैनुल आबदीन स्वयं सियालकोट जाकर जसरत खोखर की मदद माँगी थी । जसरथ ने सहायता का वचन दिया। अलीशाह उन दिनों काश्मीर का सुल्तान था । जसरत खोखर को दण्ड देने के लिए, जम्मू के राजा के वर्जित करने पर भी, सैनिक अभियान किया । जसरत खोखर से अलीशाह पराजित हो गया ( म्युनिख पाण्डु०. फो० ६८ ए०, ६९ ए०; तवक्काते अकबरी ३ : ४३४; तारीख मुबारक - शाही : पृष्ट १९४ ) । जैनुल आबदीन श्रीनगर पहुँचा । अलीशाह ने अपनी सेना पुनः संघटित किया। जम्मू के राजा की सहायता से कश्मीर उपत्या पर आक्रमण किया। जैनुल आबदीन बारहमूला मार्ग से सैन्य सहित उरी पहुँचा । वहाँ अलीशाह हार गया । आबदीन ने जसरत से मित्रता बनाये रखा। समरकन्द से लौटने पर जसरत ने पंजाब में स्वतंत्र

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