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जैनराजतरंगिणी
[१:७:३०-३४ तस्य दुर्योधनस्येव बद्धस्य हरणक्षणे ।
अभूत् संख्यान्तरेऽसंख्यतुरुष्कनृपतिक्षयः ॥ ३० ॥ ____३०. 'दुर्योधन सदृश बँधे, उसके हरण के समय, युद्ध में असख्य तुरुष्कों एवं राजाओं का क्षय हुआ।
देशेषद्भूतदुष्कालबलाबलविपर्ययात् ।
अन्योन्यनृपयुद्धेन विघ्नो देव पदे पदे ।। ३१ ।। ३१. 'हे ! नुप !! देशों में उत्पन्न दुष्काल से, बलाबल विपर्यय के कारण, राजाओं के परस्पर युद्ध से, पद-पद पर विघ्न उपस्थित हो गया।
सुखप्रद भवद्देशं श्रुत्वान्नादिसमृद्धिभिः ।
आगतांस्तत्क्षमापाल रक्षास्मान् विक्षतान् क्षुधा ।। ३२ ।। ३२. 'अतः हे ! राजन् !! अन्न आदि समृद्धि से, आपके देश को सुखप्रद सुनकर, क्षुधा पीड़ित होकर आये, हम लोगों की रक्षा करो।'
श्रुत्वेति वार्तामातां तां जानन्निव निजां प्रजाम् ।
द्रव्यकोटि ददौ राजा तदर्थे करुणाकुलः ॥ ३३ ॥ ३३. अपनी प्रजा सदृश जानते हुये इस प्रकार पीड़ा भरी, उस बात को सुनकर, राजा करुणाकुल होकर, उन्हें कोटि द्रव्य प्रदान किया।
अत्रान्तरे स्वयंसिद्धकृतं स्वय्यपुरं महत् ।
समस्तं वह्निना दग्धं शून्यारण्यमिवाभवत् ॥ ३४ ॥ ३४. इसी बीच स्वयं (युय्य') सिद्ध द्वारा निर्मित, महान सुय्यपुर, अग्नि द्वारा पूर्ण रूपेण दग्ध होकर, शून्य अरण्य सदृश हो गया।
१८३१ ई० में हुआ । तुर्को ने ईराक को तीन भागों सन् १९३२ ई० को समाप्त हो गया। स्वतन्त्र राष्ट्र अर्थात् मेप्सल विलायत, बगदाद विलायत, बसरा के रूप मे इराक राष्ट्रसंघ में सम्मिलित हुआ। विलायत तथा वे चौदह कमिश्निरियों में इस समय श्रीवर की काल गणना यहाँ भी ठीक है और बंटे है। प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना ने २२ उसे तत्कालीन काश्मीर तथा विदेशों के इतिहास का नवम्बर सन् १९१४ ई० को वसरा और ११ मार्च ज्ञान था। सन् १९१७ ई० को बगदाद विजय कर लिया। पाद-टिप्पणी : युद्ध पश्चात् ईराक ब्रिटिश का प्रभाव क्षेत्र मान ३४. (१) स्वयं-सूय्य : अवन्तिवर्मा का लिया गया। २३ अगस्त सन् १९२१ ई० को कठ- यशस्वी मन्त्री एवं सफल अभियन्ता था। उसने पुतली अमीर फैजल को इराक का सुल्तान घोषित वितस्ता की धारा बान्दी पुर के समीप परिवर्तित कर, कर दिया । इराक पर से ब्रिटिश मेण्डेट ४ अक्तूबर जल प्लावन से कश्मीर की रक्षा किया था। उसके