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जैन राजतरंगिणी
यत्क्षेत्रपालाः कालेन किङ्कराः पौरेभ्यः शवदाहोत्थमगृह्णन्
पञ्चवारिकाः ।
शुल्कमन्वहम् || ५७ ॥
५७ समय पर जिसके क्षेत्रपाल', पञ्चवारिक', भृत्य, पुरवासियों से प्रतिदिन शवदाह का शुल्क ग्रहण करते थे ।
यूनान के नियोलिथिक काल में गाड़ने की प्रथा थी परन्तु होमर काल में शवदाह को प्रथा प्रचलित हो गयी थी । मध्य तथा दक्षिण यूरोप में भी गाड़ने के स्थान पर, दाह की प्रथा प्रचलित थी । उत्तरी यूरोप तथा दक्षिणी इटली मे दाह प्रथा प्रचलित थी । जापान मे शवदाह की प्रथा प्रचलित है। रोम मे भी दाह प्रथा प्रचलित थी । स्लेविक जाति में शवदाह प्रचलित था । यूरोप सुदूर प्राचीन काल से शवदाह की प्रथा प्रचलित थी । संक्षेप में इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि आर्यभाषा-भाषी, भारतीय, यूनानी, रोमन, केल्टिक, स्पिटोनिक, लुथेनियन, दक्षिणी रूस, नीपर, दुनीस्तर, कारपेथियन के पूर्व, वेस्सरविया, वाल्कन पेनिनसुला के उत्तर प्रचलित था ।
में
यहूदी गाड़ते है । यहूदियों की परम्परा का अनुकरण करते हुए, ईशायी तथा मुसलमानों में भी गाड़ने की प्रथा प्रचलित है । जिन आर्य देशों ने इशायी तथा मुसलिम धर्म स्वीकार कर लिया, वहाँ शवदाह की प्रथा समाप्त हो गयी तथा गाडना धार्मिक कृत्य मान लिया गया। बौद्ध देशों में शवदाह की प्रथा प्रचलित हो गयी । बौद्ध भिक्षु निश्चय ही फूके जाते है । तिब्बत में भी बौद्ध लामा फूके जाते हैं यद्यपि साधारण जनता में शव नष्ट करने अन्य प्रथायें भी है ।
[ १ : ५ : ५७
इशायी देशों में भी अव लोग बिजली से शवदाह की ओर लौटने लगे है। इशायी तथा यहूदियों में यह मत फैल रहा है कि बिजली से शवदाह करना धर्म विरुद्ध नही है, क्योंकि शवदाह के प्राचीन प्रथा के विरुद्ध ही धार्मिक पुस्तकों में लिखा गया है । मुसलिम देश इस दिशा में बहुत पीछे हैं । यद्यपि
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बड़े नगरों में जहाँ कब्रिस्तान बनाने के लिए भूमि का अभाव है, वहाँ विचार बिजली द्वारा शवदाह कराने की हो रहा है । यह मानना ही पड़ेगा कि शवदाह की प्रथा अधिक वैज्ञानिक है । पारसी लोग न तो शवदाह करते है और न गाडते है । क्योकि उनका मत है कि पृथ्वी, जल तथा अग्नि पवित्र है । उन्हें शव अर्पित करने से वे अपवित्र हो जाते है, जो उनके धर्म विरुद्ध है । पुराने इरानियों में पारसी धर्म के पूर्व वलख मे मरणासन्न तथा वृद्धो को कुत्तों से खिलवा दिया जाता था । मग्गी लोग शव को कुत्ता तथा पक्षियो को खाने के लिए छोड़ देते थे । सीथियन जाति भी अपने शवो को पक्षियों से खिलाकर बचे हुए पजर को गाड़ती थी । तिब्बत में सभी प्रकार अपनाये जाते थे । कुछ पक्षियों को खिलाते थे, कुछ जन्तुओं से पूरा शरीर खिला देते थे, कुछ नदियों अथवा जलाशय में शव प्रवाह कर देते थे तथा राजा और बड़े लोगो का शव इमवाम कर रखते थे ।
पाद-टिप्पणी ।
प्रथम पाद के द्वितीय चरण का पाठ सन्दिग्ध है । ५७. ( १ ) क्षेत्रपाल : राजा के खास महल के निरीक्षक का नाम क्षेत्रपाल था ( इण्ड० : एण्टीक्वेरी १५ : ३०६ तथा इपिग्राफिक इण्डिया० : १७ : ३२१ ) ।
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( २ ) पञ्चवारीक : एक तत्कालीन राज्यकर्मचारी ।
( ३ ) शुल्क : हिन्दुओं से स्मशान में शवदाह करने के लिए सिकन्दर बुतशिकन के समय से कर लगा दिया गया था । स्मशान पर शवदाह करने पर भी प्रतिबन्ध था । निकटस्थ मुसलिम आबादी के